________________
एस धम्मो सनंतनो
है सुवास!
साधारण आदमी में सुवास नहीं होती। वह करीब-करीब कागज का फूल है। कागज का, क्योंकि उसने सब झूठ का जाल अपने चारों तरफ बना रखा है। उसने दूसरों को धोखा दिया है। अपने को भी धोखा दे लिया है। प्रवंचक है। मिथ्या है। झूठ ही झूठ की पर्ते हैं। सच उसमें खोजे से नहीं मिलता। कितना ही खोदो, एक झूठ के बाद दूसरा झूठ; दूसरे झूठ के बाद तीसरा झूठ। कितना ही खोदो-एक मुखौटा, दूसरा मुखौटा; मुखौटे पर मुखौटे! उसके असली चेहरे का पता नहीं चलता कि असली चेहरा क्या है! और ऐसा नहीं कि तुम्हें पता नहीं चलता; उसे खुद भी पता नहीं रहा है। उसे खुद भी अपने असली चेहरे का पता नहीं है।
बुद्ध की परंपरा में भिक्षुओं से निरंतर कहा गया है। अपने असली चेहरे की खोज करो। वह चेहरा जो जन्म के पहले तुम्हारा था और मृत्यु के बाद फिर तुम्हारा होगा। उस चेहरे की खोज करो। जो चेहरे जिंदगी ने तुम्हें दे दिए, इन चेहरों को उतारकर रखो। वे सब चेहरे झूठ हैं।
बच्चा पैदा हुआ, तब न तो हिंदू होता, न मुसलमान; न ईसाई, न जैन, न बौद्ध। यह असली बात है। फिर उसके ऊपर एक चेहरा हमने टांग दिया कि यह हिंदू, यह मुसलमान, यह ईसाई। फिर हिंदू में भी ब्राह्मण, कि शूद्र, कि क्षत्रिय, कि वैश्य! फिर ब्राह्मणों में भी कान्यकुब्ज ब्राह्मण, कि देशस्थ, कि कोकणस्थ। फिर रोग पर रोग हैं; बीमारियों पर बीमारियां हैं। खोजते चले जाओ, चेहरे पर चेहरे हैं। इसका असली चेहरा पता ही नहीं चलेगा।
'जब यह पैदा हुआ था, तब इसे यह भी पता नहीं था कि मैं स्त्री हूं या पुरुष। तब यह बस था। तब इसे कुछ पता नहीं था। इसका देह-भाव नहीं था। सिर्फ
आत्म-भाव था। मैं हूं-बस, इतना था। अब यह स्त्री है, पुरुष है। हिंद है, मुसलमान है। गरीब है, अमीर है। ज्ञानी है, अज्ञानी है। साधु है, असाधु है। ये सब
चेहरे! ये सब चेहरे इसने खरीदे बाजार से। स्कूलों में बिकते हैं, कालेजों में बिकते हैं, यूनिवर्सिटीज में बिकते हैं। सब तरफ चेहरे बिकते हैं। अब यह एम.ए. हो गया; अब यह पीएच.डी. हो गया; अब यह डी.लिट. हो गया!
यहां इस आश्रम में तुम्हें बहुत से पीएच.डी. बुहारी लगाते हुए मिल जाएंगे। उन्होंने चेहरा उतारकर रख दिया। तुम पहचान भी न सकोगे कि ये पीएच.डी. हैं। बुहारी लगाते हैं। उतारकर रख दिया चेहरा। __ अभी एक युवती आयी। मेडीसिन में पीएच.डी. है। मैंने उससे कहा कि तेरा क्या इरादा है ? उसने कहा कि बस, मुझे झाडू लगानी है। किसी को मैं बताना भी नहीं चाहती कि मैं पीएच.डी. हूं मेडीसिन में। मुझे डाक्टर नहीं बनना है। तो मैंने कहा कि हमें एक अस्पताल की तो जरूरत है ही; संन्यासी बीमार पड़ते हैं। तो उसने कहा : अस्पताल में बुहारी लगा दूंगी। मगर नहीं; यह चेहरा मैं नहीं चाहती। मैं इतनी
82