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________________ विराट की अभीप्सा इसलिए आशीष की जरूरत है। आशीष का अर्थ है: हम तो इस किनारे हैं; उस किनारे से कोई पुकार दे दे। आशीष का अर्थ है: हम तो इस किनारे खड़े हैं, कोई उस किनारे से कह दे कि घबड़ाओ मत, मैं पहुंच गया हूं; आओ। और जैसे तुम डर रहे हो, मैं भी डरता था। डरो मत; पहुंचना होता है। देखो, मैं पहुंच गया हूं। बुद्धों का सत्संग खोजने का और क्या अर्थ होता है ! यही कि किसी ऐसे आदमी के पास होना, जो अनुभव से कह सके कि पहुंच गया हूं। शास्त्रों से नहीं, अनुभव से; जो गवाह हो, जो साक्षी हो। जो यह न कहे कि मैं परमात्मा को मानता हूं। जो कहे, मैं जानता हूं। जो इतना ही न कहे, जानता हूं; बल्कि कहे कि मैं हूं। ये तीन अवस्थाएं हैं : मानना, जानना, होना। मानना बहुत दूर है। वह इसी किनारे खड़ा आदमी है, जो मानता है। उसे पता नहीं है। अंधा आदमी जैसे रोशनी को मानता है कि होना चाहिए, होगी। इतने लोग कहते हैं, तो जरूर होगी। मगर संदेह तो उठते ही रहेंगे, क्योंकि उसने तो जाना नहीं; उसने तो देखा नहीं। पता नहीं, लोग झूठ ही बोलते हों! लोगों का क्या भरोसा? अपने अनुभव के बिना जानना कैसे हो? मानना भी कैसे हो? तो मानना भी थोथा होता है। सब मानना थोथा होता है। सब विश्वास अंधविश्वास होते हैं। फिर एक आदमी है, जिसकी आंख खुली और जिसने देखा और देखा कि हां, रोशनी है। वृक्षों पर नाचती हुई किरणे देखीं। आकाश में उगा सूरज देखा। रात में घिरा आकाश चांद-तारों से भरा देखा। देखे फूल। हजार-हजार रंग देखे। आकाश में खिले इंद्रधनुष देखे। देखा सब, और कहा कि नहीं; है। यह जानना हुआ। ___ इसके आगे एक और स्थिति है, जब आदमी जानता ही नहीं; आंख ही नहीं हो जाता; बल्कि रोशनी ही हो जाता है; जब स्वयं प्रकाशरूप हो जाता है। __ इसलिए बुद्ध को हम भगवान कहते हैं, महावीर को भगवान कहते हैं। जाना ही नहीं-हो गए। जो जाना—वही हो गए। जानने में थोड़ी दूरी होती है। मानने में तो बहुत दूरी होती है। जानने में थोड़ी दूरी होती है। देख रहे हैं, वह रहा प्रकाश; हम खड़े यहां! फिर धीरे-धीरे दूरी मिटती जाती है, मिटती जाती है। और जो जाना जा रहा है, और जो जानने वाला है-एक ही हो जाते हैं। ज्ञाता और ज्ञेय का भेद गिर जाता है। वहीं परम ज्ञान है। __ ऐसे किसी व्यक्ति का आशीष मिल जाए, तो तुम्हारे भीतर उत्साह और उमंग भर जाती है। श्रद्धा का सूत्रपात होता है। संवेग पैदा होता है। कोई पहुंच गया है, तो हम भी पहुंच सकते हैं। कोई पहुंच गया है, तो दूसरा किनारा है। इसलिए आशीष मांगने आए थे। बुद्ध जिस कुटी में रहते थे, उसका नाम था गंधकुटी। बुद्ध की सुगंध के कारण। एक सुवास है आत्मा की। जैसे फूल जब खिलते हैं, तो एक सुवास होती है। कागज के फूलों में नहीं होती। कागज के फूल कभी खिलते ही नहीं। असली फूलों में होती 81
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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