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________________ एस धम्मो सनंतनो जिन्होंने पा लिया है; उनके हाथ का सहारा मिल जाए तो हार का कोई कारण नहीं है। अक्सर तुम हारते हो, क्योंकि क्षुद्र से लड़ते हो; पहली बात। और कभी-कभी विराट की आकांक्षा से भी भरते हो, लेकिन तुम्हारे पास आशीष की संपदा नहीं होती। तुम अकेले पड़ जाते हो। दूर किनारा। विराट तो बहुत दूर है; पता नहीं कहां है किनारा! यह किनारा तो हमें पता है; दूसरा किनारा, वह दिखायी भी नहीं पड़ता; सागर का दूसरा किनारा; उसकी यात्रा पर चलते हो। घबड़ाहट होती है। यह किनारा छोड़ने में घबड़ाहट होती है। ___ इसीलिए तो जब तुम ध्यान करने बैठते हो, तो विचार का किनारा नहीं छूटता। मन पकड़-पकड़ लेता है। मन कहता है कि जो परिचित है, उसको मत छोड़ो। जिसमें परिचय है, उसमें सुरक्षा है। यह जाना-माना है; पहचाना है; अपना है; यहां रहे हैं जन्मों-जन्मों से। तुम कहां जाते हो! किस किनारे की तलाश करते हो? कहीं भटक न जाओ; कहीं सागर में डूब न जाओ! कहीं ऐसा न हो कि यह किनारा भी हाथ से जाए और दूसरा भी न मिले। दूसरा है, इसका पक्का क्या है? किसने तुमसे कहा कि दूसरा किनारा है? तुमने तो नहीं जाना। कहीं ऐसा न हो.कि तुम किसी प्रवंचना में पड़ गए हो! कि किसी झूठे सपने ने तुम्हें पकड़ लिया है! मन तुम्हारी सुरक्षा के लिए कहेगा ः रुके रहो इसी किनारे पर। विचार के तट पर ही रुके रहो। विचार है यह किनारा; ध्यान है वह किनारा। विचार है संसार; ध्यान है परमात्मा। तो तुमने देखा ः तुम ध्यान करने बैठते हो, कितने विचार उठते हैं ! ज्यादा उठते हैं। उससे ज्यादा उठते हैं, जितना कि जब तुम ध्यान करने नहीं बैठते। चौबीस घंटे हजार काम में लगे रहते हो, इतने विचार नहीं सताते। घंटेभर आंख बंद करके बैठ जाओ आसन लगाकर। तुम इतने हैरान हो जाते हो कि मामला क्या है! क्या विचार प्रतीक्षा ही करते थे कि करो, बच्चू ध्यान करो, फिर तुम्हें बताएंगे! सब तरफ से टूट पड़ते हैं! सब दिशाओं से हमला बोल देते हैं। जैसे प्रतीक्षा में ही थे कि करो ध्यान, तो मजा चखाएं। ____ आने लगते हैं सब तरह के विचार-धन के, वासना के, काम के, राजनीति के, यह-वह, कूड़ा-करकट-सब! अखबार उड़े आते हैं। सब! एक दिशा से नहीं, सब दिशाओं से हमला हो जाता है। एकदम घिर जाते हो दुश्मनों में। थोड़ी देर में थककर उठ आते हो। सोचते होः इससे तो जब हम काम में लगे रहते हैं, तभी कम विचार होते हैं। यह तो चले थे निर्विचार होने, और विचार के झंझावात से घिर गए! __ऐसा क्यों होता है? इसलिए होता है कि मन तुम्हारी सुरक्षा कर रहा है। मन कह रहा है: कहां जाते हो! जिस लक्ष्य का कोई पता नहीं; जहां तुम कभी गए नहीं; जिसका कोई स्वाद नहीं; किस मृग-मरीचिका के पीछे जा रहे हो? व्यावहारिक बनो। जो जाना-माना है, परखा है, उसी को पकड़े रहो। R0
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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