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________________ विराट की अभीप्सा जागता हुआ पाओगे। चुनौती का सामना करना है। चुनौती से जूझना है। __तुमने कभी खयाल कियाः अगर किसी कठिनाई के समय में तुम जूझ पड़ते हो, तो तुम्हारे भीतर बड़ी ऊर्जा होती है, जैसी सामान्यतया नहीं होती। जैसे समझो कि घर में आग लग गयी है। तुम थके-मांदे आए थे; कि सात दिन से यात्रा कर रहे थे और सारा शरीर टूट रहा था। और तुम बिलकुल थके-मांदे थे, और भूखे थे। और चाहते थे कि किसी तरह भोजन करके गिर पड़ो बिस्तर में, और खो जाओ दो दिन के लिए बिस्तर में। दो दिन उठना ही नहीं है। ___ घर आए। खाने की तो बात दूर, देखा कि घर में लपटें लगी हैं; आग जल रही है। सब भूल गए। सात दिन की थकान, शरीर का टूटा-फूटा होना, भूख, निद्रा-सब गयी! एक क्षण में कोई ज्योति तुम्हारे भीतर भभककर उठी। एक ऊर्जा उठी। तुम जूझ गए। ___ अब शायद तुम रातभर आग से लड़ते रहो और नींद नहीं आएगी। और पहले तुम सोच रहे थे कि घड़ीभर भी अगर मुझे जागना पड़ा, भोजन के तैयार होने के समय की प्रतीक्षा करनी पड़ी, तो मैं सो जाऊंगा; गिर जाऊंगा। क्या हुआ? कहां से यह ऊर्जा आयी? एक बड़ी चुनौती सामने खड़ी हो गयी। उस बड़ी चुनौती के कारण यह ऊर्जा आयी। चुनौतियां चुनना बड़ी कुशलता की बात है। और अगर चुनना ही हो, तो आत्यंतिक; कहो उसे समाधि, निर्वाण, मोक्ष, परमात्मा; जो नाम देना चाहो। मगर जो परमात्मा को पाने की प्रबल अभीप्सा से जग खड़ा होता है, उसके भीतर सोयी हुई अंतस्तल की सारी शक्तियां जग आती हैं। उसकी जड़ें तक कंप जाती हैं। उसके भीतर जो भी छिपा है, सब प्रगट हो जाता है। क्योंकि इस बड़ी चुनौती के सामने अब कुछ भी छिपाकर नहीं रखा जा सकता। अब तो सभी दांव पर लगाना होगा, तो ही यात्रा हो सकती है। __इसलिए कहता हूं कि छोटी-मोटी चीज से लड़ोगे, तो हारोगे। क्योंकि तुम्हारी सोयी हुई शक्तियों को चुनौती नहीं मिलती। अब सिगरेट नहीं पीना है-यह बात ही सुनकर कोई तुम्हारी आत्मा जागने वाली है! आत्मा कहेगी कि पीओ न पीओ, ठीक है। क्या फर्क पड़ता है! कि नमक नहीं खाएंगे आज; कि आज भोजन में घी नहीं लेंगे। इन सब क्षुद्र बातों से कुछ भी नहीं होता। कि पानी छानकर पीएंगे; कि रात पानी नहीं पीएंगे। इन सब क्षुद्र बातों से कुछ भी नहीं होता है। ऐसी कोई चुनौती कि तीर की तरह छिद जाए, चुभ जाए, कि चली जाए भीतर तक, कि सारे सोए हुए अंतस्तल को कंपा दे; झंझावात की तरह आए, तूफान की तरह आए और तुम्हें उठा जाए। उसी उठने में पहुंचना है। लेकिन फिर भी काश! आशीष भी मिल जाए उनका, जो पहुंच गए हैं; उनका,
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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