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विराट की अभीप्सा यात्रा तो व्यक्ति को स्वयं ही करनी है। भरोसे की कमी है। गुरु की जरूरत है भरोसे के कारण। जिस दिन तुम्हारी यात्रा पूरी हो जाएगी, उस दिन तुम पाओगेः गुरु ने कुछ भी नहीं किया और बहुत कुछ भी किया। __ कुछ भी नहीं किया इस अर्थों में कि जिस दिन तुम यात्रा पूरी कर लोगे, तुम पाओगे कि गुरु पास-पास तैरता रहा; तुम्हें भरोसा बना रहा कि अगर डूगा, तो कोई बचा लेगा। लेकिन तैरते तुम रहे। तुम तैरकर पहुंचे अपने आप। शायद गुरु ने हाथ भी न लगाया हो; लेकिन पास-पास तैरता रहा।
तो एक अर्थ में तो कुछ भी नहीं किया; हाथ भी नहीं लगाया। हाथ लगाने की जरूरत ही नहीं है। तुम पहुंच सकते हो, इतनी शक्ति परमात्मा ने प्रत्येक को दी है कि वापस मूलस्रोत तक पहुंच जाए। इतना पाथेय सभी के भीतर रखा है। इतना कलेवा तुम लेकर ही पैदा हुए हो कि यात्रा पूरी हो जाए, और भोजन चुके नहीं।
लेकिन तुममें भरोसे की कमी है और वह भी स्वाभाविक है। कभी जिस मार्ग पर चले नहीं, उस मार्ग पर चलने में भरोसा हो कैसे! श्रद्धा का अभाव है। आत्मश्रद्धा नहीं है। तुम्हें डर है कि मुझसे न हो सकेगा। और तुम्हारे डर के कारण हैं, सुनिश्चित कारण हैं। छोटी-छोटी चीजें की हैं और नहीं हो सकी। कभी सिगरेट पीते थे और छोड़ना चाही-नहीं छूटी। वर्षों मेहनत की और नहीं छूटी। कितनी ही बार तय किया
और नहीं छूटी। और हर बार तय करके गिरे और हर बार तय करके पछताए; और फिर पीया, और फिर भूल की; फिर अपराध हुआ। धीरे-धीरे ग्लानि बढ़ती गयी;
आत्म-विश्वास खोता गया। एक बात साफ हो गयी कि तुम्हारे किए कुछ होने वाला नहीं है। क्षुद्र सी बात नहीं छूटती!
तो जिस आदमी को सिगरेट पीना न छूट सका हो अपने ही संकल्प से, वह ध्यान में जाए-कैसे भरोसा हो।
जो आदमी कई बार निर्णय किया कि सुबह पांच बजे उठ आऊंगा ब्रह्म-मुहूर्त में, और कभी नहीं उठ सका। अलार्म भी भरा। पांच बजे अलार्म भी बजा, तो गाली देकर घड़ी को भी पटक दिया। करवट लेकर फिर सो रहा। सुबह पछताया। फिर रोया, चीखा। फिर कसम खायी कि अब कल कुछ भी हो जाए, उलूंगा। फिर कल यही हुआ। कितने दिन तक ऐसा करोगे? एक दिन तुम पाओगेः यह अपने से नहीं होना। छोड़ो। सोते तो रहते ही हो, अब यह झंझट भी क्यों लेनी! उठना तो होता नहीं; होगा भी नहीं। हार गए। हार गए, तो तुम्हारे भीतर से आत्म-श्रद्धा तिरोहित हो जाएगी।
इसलिए मैं तुमसे कहता हूं : क्षुद्र बातों में अपने जीवन-प्रयास को मत लगाना। क्योंकि क्षुद्र से अगर हार गए, तो विराट की दिशा में जाने में अड़चन आ जाएगी। इसलिए मैं नहीं कहता कि तुम लड़ो छोटी-छोटी बातों से। छोटी-छोटी बातों से लड़ने से सिर्फ हानि होती है, लाभ कुछ भी नहीं होता है। मैं तो तुमसे कहता हूं : लड़ना ही हो, तो किसी बड़ी बात में ही जूझना। छोटी
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