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________________ एस धम्मो सनंतनो हो रही हैं, क्योंकि तुम टूटे हो खंड-खंड, टुकड़े-टुकड़े में। तुम एक नहीं हो, इसलिए जीवन में बहुत सी चीजें असंभव हैं। तुम एक हो जाओ, तो कुछ भी असंभव नहीं है । संकल्प का यही अर्थ होता है। पांच सौ भिक्षुओं ने भगवान का आशीष ले ध्यान की गहराइयों में उतरने का संकल्प किया। फिर भी, संकल्प तो उन्होंने किया, भगवान के आशीष को भी आए। तुम्हारा संकल्प ऐसे तो काफी है, लेकिन अंततः तुम्हारा ही है। एक अज्ञानी के संकल्प का मूल्य कितना हो सकता है ! बांध-बंधकर, किसी तरह सम्हालकर करने की कोशिश करोगे; लेकिन भूल-चूक हो जाने की संभावना है। किसी ज्ञानी का आशीष भी हो, तो तुम्हारे संकल्प के बचे रहने की, तुम्हारे संकल्प के बने रहने की, तुम्हारे संकल्प के पूरे होने की ज्यादा गुंजाइश है। जीत सुनिश्चित हो जाएगी। ज्ञानी का आशीष तुम्हारे खंडों को सीमेंट की तरह जोड़ देगा । कोई मेरे पीछे खड़ा है, जो जानता है—यह भरोसा भी तुम्हें दूर तक ले जाने वाला होगा। जैसे छोटे बच्चे को कोई डर नहीं लगता, उसकी मां पास हो, बस । फिर चाहे तुम उसे नर्क ले जाओ, कोई फिकर नहीं है । वह नर्क में भी खेलने लगेगा; उसकी मां पास है । और तुम उसे स्वर्ग ले जाओ, और उसकी मां पास न हो, तो वह स्वर्ग में भी विपन्न और दुखी होने लगेगा | उसकी मां पास नहीं है। रोने लगेगा; चीखने-पुकारने लगेगा । वह जो मां की मौजूदगी है, वही गुरु की मौजूदगी है । गुरु मौजूद हो, तो यात्रा बड़ी सुगम हो जाती है। लेकिन गुरु की मौजूदगी का मतलब क्या होता है ? गुरु की मौजूदगी का मतलब है कि तुमने किसी के चरणों में सिर झुकाया है, और किसी को गुरु स्वीकार किया है। गुरु मौजूद भी हो, लेकिन तुम्हारे भीतर शिष्य-भाव मौजूद न हो, तो किसी अर्थ का नहीं है। फिर गुरु गुरु नहीं है। गुरु बनता है तुम्हारे शिष्य-भाव से । इन पांच सौ भिक्षुओं ने भगवान के चरणों में आकर प्रार्थना की होगी कि हम ध्यान की गहराइयों में जाना चाहते हैं। जी लिए बहुत विचार में और कुछ भी नहीं पाया। सोच लिया खूब, कुछ भी नहीं मिला । कर लिया सब; दुख बना रहता है, मिटता नहीं। अब हम सब दांव पर लगा देना चाहते हैं। अब हम कुछ बचाना नहीं चाहते। अब हमें आशीष दो कि हम भटक न जाएं; कि हम बीच से लौट न आएं; कि हम डगमगा न जाएं; कि हम पथ-भ्रष्ट न हो जाएं; कि हम मार्गच्युत न हो जाएं; कि हम किसी और दिशा में न बह जाएं। आशीष दो कि आप हमारे साथ रहोगे । आशीष दो कि आपकी छत्र-छाया होगी। आशीष दो कि आपकी दृष्टि हमारा पीछा करेगी कि आप हमारे भीतर मौजूद रहेंगे और देखते रहेंगे कि हम ठीक चल रहे न ! हम चूक तो नहीं रहे। यह भरोसा हमें आ जाए कि आप खड़े हो हमारे साथ; हम अकेले नहीं हैं; तो हम दूर तक की यात्रा कर लेंगे। 74
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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