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________________ विराट की अभीप्सा को बुझा रहे हो; उसकी संतान को बुझा रहे हो। कई पीढ़ियां बीत गयीं रात में, लेकिन अगर तेल बचा रहे, तो ज्योति जलती चली जाएगी। और यह भी हो सकता है, इस दीए में बुझ जाए, और दूसरे दीए में छलांग लगा जाए जिसमें तेल भरा है, तो वहां जलने लगेगी; संतान वहां बहने लगेगी। ऐसा ही व्यक्ति एक जन्म से दूसरे जन्म में छलांग लगाता है। वासना नहीं चुकती, तो ज्योति नयी वासना नए तेल को खोज लेती है, नए गर्भ को खोज लेती है। लेकिन जिस दिन वासना का तेल परिपूर्ण चुक गया, ज्योति जलकर भस्मीभूत हो जाती है; निर्वाण हो जाता है; तुम महाशून्य में लीन हो जाते हो। प्रवाह संसार है; प्रवाह का शून्य हो जाना मोक्ष है। भगवान जेतवन में विहरते थे। उस समय पांच सौ भिक्षुओं ने भगवान का आशीष ले ध्यान की गहराइयों में उतरने का संकल्प किया। ध्यान के लिए संकल्प चाहिए। संकल्प का अर्थ होता है। सारी ऊर्जा को एक बिंदु पर संलग्न कर देना। संकल्प का अर्थ होता है। अपनी ऊर्जा को विभाजित न करना। क्योंकि अविभाज्य ऊर्जा हो, तो ही कहीं पहुंचना हो सकता है। जैसे सूरज की किरणें हैं। अगर इनको तुम इकट्ठा कर लो, एक जगह कर लो, तो आग पैदा हो जाए। बिखरी रहें, तो आग पैदा नहीं होती। ऐसी ही मनुष्य की जीवन ऊर्जा है। एक जगह पड़े, एक बिंदु पर गिरने लगे, तो महाशक्ति प्रज्वलित होती है। पच्चीस धाराओं में बहती रहे, तो धीरे-धीरे खो जाती है। जैसे नदी रेगिस्तान में खो जाए। कहीं पहुंचती नहीं। समझो, गंगा की कई धाराएं हो जाएं, तो सागर तक नहीं पहुंच सकेगी फिर। गंगा पहुंचती है सागर तक एक धारा के कारण। और जितनी धाराएं मार्ग में मिलती हैं, वे सब गंगा के साथ एक होती जाती हैं। जो नदी आयी-गिरी। यमुना आयी-गिरी। जो नदी-नाला आया-गिरा। वे सब गंगा के साथ एक होते चले जाते हैं। ___ गंगोत्री में तो गंगा बड़ी छोटी है। उतरते-उतरते पहाड़ों से, बड़ी होने लगती है। मैदान में विराट होने लगती है। सागर तक पहुंचते-पहुंचते खुद ही सागर जैसी हो जाती है। गंगोत्री से गंगासागर तक की यात्रा समझने जैसी है, क्योंकि वही मनुष्य की ऊर्जा की यात्रा भी है। तुम दो तरह से जी सकते होः संकल्पहीन या संकल्पवान। संकल्पहीन का अर्थ होता है : तुम्हारे जीवन में पच्चीस धाराएं हैं। धन भी कमा लूं: पद भी कमा लूं; प्रतिष्ठा भी बना लूं। साधु भी कहलाऊं; ध्यान भी कर लूं; मंदिर भी हो आऊं; दुकान भी चलती रहे। तुम्हारा जीवन पच्चीस धाराओं में विभाजित है। इसलिए कुछ भी पूरा नहीं हो पाता। न दुकान पूरी होती, न मंदिर पूरा होता। न धन मिलता, न ध्यान मिलता। ऊर्जा संगृहीत होनी चाहिए, तो संकल्प का जन्म होता है। एक धारा में गिरे, अखंडित गिरे, तो कुछ भी असंभव नहीं है। जीवन में चीजें असंभव इसलिए मालूम 73
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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