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________________ एस धम्मो सनंतनो बुद्ध-भाषा में है का कोई मूल्य नहीं है; हो रहा है का मूल्य है। जैन-भाषा में है का मूल्य है; क्योंकि हमें उसी को खोजना है, जो कभी नहीं बदलता। जो बदल रहा है, वह संसार।। वैसा ही हिंदू-विचार में भी, जो बदल रहा है, वह माया; और जो कभी नहीं बदलता, वही ब्रह्म। तो ब्रह्म को हम ऐसा नहीं कह सकते कि विहरता है। कहना होगा, विराजता है। बुद्ध की सारी कथाएं, उनके संबंध में लिखे गए सारे वचन सदा शुरू होते हैं : भगवान जेतवन में या श्रावस्ती में या किसी और स्थान पर विहरते थे। गत्यात्मकता पर बुद्ध का बड़ा जोर है। सब प्रवाहरूप है। और जिस दिन प्रवाह रुक जाएगा, उस दिन तुम्हारे हाथ में ऐसा नहीं है कि पूर्ण और शाश्वत पकड़ में आ जाएगा। जिस दिन प्रवाह रुक जाएगा, उस दिन तुम तिरोहित हो जाओगे। महावीर के मोक्ष में आत्मा बचेगी और फिर सदा-सदा रहेगी। बद्ध के निर्वाण में आत्मा ऐसे बुझ जाएगी, जैसे दीया बुझ जाता है। इसीलिए शब्द निर्वाण का उपयोग हुआ है। निर्वाण का अर्थ होता है : दीए का बुझ जाना। . एक दीया जल रहा है। तुमने फूंक मार दी और ज्योति बुझ गयी। अब कोई तुमसे पूछे कि ज्योति कहां गयी तो क्या कहोगे! कोई तुमसे पूछे कि अब ज्योति कहां है तो क्या कहोगे? ऐसे ही, कहते हैं बुद्ध, जब वासना का तेल चुक जाता है और जीवन की ज्योति बुझ जाती है, तो तुम शून्य हो जाते हो। उस शून्य का नाम निर्वाण है। ऐसा नहीं है कि तुम्हारे हाथ में कोई थिर वस्तु पकड़ में आ जाती है। पकड़ने वाला भी खो जाता है। मुट्ठी ही खो जाती है, बांधोगे किस पर! तो जगत है प्रवाह और निर्वाण है प्रवाह का शून्य हो जाना, प्रवाह से मुक्त हो जाना। लेकिन खयाल रखना, यह खयाल मत लेना मन में कि मुक्त होकर तुम बचोगे। प्रवाह में ही बचाव है। जब तक प्रवाह है, तभी तक तुम हो। प्रवाह ही तुम हो। जिस दिन प्रवाह गया, तुम भी गए। दीए की ज्योति तुम सांझ को जलाते हो, और सुबह जब उठकर देखते हो, तो सोचते हो, वही ज्योति जल रही है; तो गलत सोचते हो। वह ज्योति तो लाखों बार बुझ चुकी रात में। प्रतिपल धुआं हो रही है। ज्योति धुआं होती जाती है। नयी ज्योति जन्मती जाती है। पुरानी हटती जाती है। जिसको तुमने सांझ जलाया था, सुबह तुम उसी को नहीं बुझा सकते। वह तो बची ही नहीं। फिर सुबह जिस ज्योति को तुम बुझाते हो, यह वही ज्योति नहीं है जिसको तुमने जलाया था; यह दूसरी ही ज्योति है। यद्यपि उसी ज्योति के प्रवाह में आयी है; संतति है, संतान है; वही नहीं है। जैसे बाप ने किसी के तुम्हें गाली दी थी, तुमने बेटे को मारा। ऐसी बात है। सांझ जो जलायी थी ज्योति, वह तो कब की गयी। अब तुम उसके बेटे-बेटी
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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