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________________ जीने की कला पछा है अनादि ने। यही मार्ग संन्यासी का भी है-परवाने का मार्ग। जो जलने को तत्पर है, जो मिटने को राजी है, जो खोने की हिम्मत रखता है। 'दीपक की चमक में आग भी है दुनिया ने कहा परवाने से।' दुनिया तो सदा से कहती रही है परवाने से-कि पागल! कहां जाता है? वह सिर्फ चमक नहीं है दीए में; वहां आग भी है। यही तो तुमसे भी कहा है लोगों ने कि मेरे पास मत आना; यहां चमक ही नहीं है, आग भी है। __ लेकिन परवाने दुनिया की सुनते! परवाने दुनिया की सुनें, तो परवाने नहीं। जो दुनिया की सुनें, वे परवाने हो नहीं सकते। परवाने तो अपने भीतर की सुनते हैं। दीए ने पुकारा है। शमा ने पुकारा है। उस जलती ज्योति ने पुकारा है। जाना है-चाहे कोई भी कीमत हो। 'दीपक की चमक में आग भी है दुनिया ने कहा परवाने से। परवाने मगर ये कहने लगे दीवाने तो जलकर ही देखेंगे।' दुनिया में और कोई देखने का उपाय भी नहीं है; जलकर ही देखना पड़ता है। चलकर ही पहुंचता है कोई और जलकर ही देखता है कोई। बिना अनुभव के कोई ज्ञान नहीं। 'तेरी याद में जलकर देख लिया अब आग में जलकर देखेंगे। इस राह में अपनी मौत सही ये राह भी चलकर देखेंगे।' - मौत निश्चित ही है; शक-सुबहा कहां! मौत निश्चित ही है। वह परवाना देख रहा है : दूसरे परवाने भी जल गए हैं, जो पास पहुंचकर गिर गए हैं। उनके पंख जल गए हैं; उनके प्राण उड़ गए हैं। लेकिन यह दूसरों को दिखायी पड़ता है कि बेचारा परवाना! जलकर मर गया। लेकिन जो दूसरे परवाने चले आ रहे हैं, वे देखते हैं कि धन्यभागी था; देह से मुक्त हो गया; पिंजरे से बाहर हो गया। छूट गया बंधन; छूट गयी काया। ये तो जो अपने को बचाना चाहते हैं, वे सोचते हैं कि बेचारा! जलकर मर गया! नासमझ, अज्ञानी, जलकर मर गया। दूर रहता। लेकिन जो परवाने चले आ रहे हैं और उड़ते हुए, उनको तो यही दिखायी पड़ता है कि धन्यभागी था जो हमसे पहले पहुंच गया। वे इतना ही नहीं देखते कि जो नीचे
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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