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जीने की कला
ऐसा हुआ काशी में। सच्चे ब्राह्मण इकट्ठे हुए। काशी में झूठे ब्राह्मण तो बहुत हैं, मगर एक दफे सच्चे ब्राह्मण इकट्ठे हुए सारे देश से। वे कबीर के दर्शन को इकट्ठे हुए-पंद्रह सौ ब्राह्मण। अनूठी कथा है। हुई भी हो, इसमें शक होता है। पंद्रह सौ ब्राह्मण? मगर हो भी सकती है सच। कबीर जैसे व्यक्तियों के पास कभी-कभी ऐसे प्रसंग भी हो जाते हैं।
पंद्रह सौ ब्राह्मण सारे देश से इकट्ठे हुए कबीर के सत्संग के लिए। कबीर तो जुलाहा थे; मुसलमान थे जन्म से तो। उनकी तो शूद्र से कोई ऊंची स्थिति नहीं थी। शूद्र से गए-बीते थे! खुद उनके गुरु रामानंद ने, जो कि हिम्मतवर आदमी थे, उन तक ने इनकार कर दिया था कबीर को दीक्षा देने से—कि तू भई, हमें झंझट में डाल देगा!
कबीर ने उनसे दीक्षा ली थी बड़े उपाय से, बड़ी कुशलता से। ऐसी दीक्षा पहले कभी हुई भी नहीं थी। रामानंद ने कई बार इनकार कर दिया कबीर को कि तू यहां आया ही मत कर, क्योंकि इससे हम झंझट में पड़ जाएंगे। यह ब्राह्मणों का गढ़ है काशी; और यहां मैं किसी जुलाहे को दे दूंगा दीक्षा, तो मुश्किल होगी। हिम्मतवर न रहे होंगे; कमजोर रहे होंगे।
तो कबीर गंगा के किनारे सीढ़ी पर, जहां रामानंद स्नान करने जाते रोज सुबह चार बजे, चादर ओढ़कर पड़ रहे। अंधेरे में रामानंद का पैर पड़ गया कबीर पर। पैर पड़ गया तो कहाः राम! राम! और कबीर ने कहा : बस, दे दिया मंत्र! हो गया मैं शिष्य आपका। आप हुए मेरे गुरु। अब राम-राम जपूंगा और पा लूंगा। और कबीर राम-राम जपकर पा लिए।
इतनी खोज हो, तो राम-राम क्या, कुछ भी जपो-मिल जाएगा। ऐसी प्रगाढ़ आकांक्षा हो! फिर तो रामानंद भी इनकार न कर सके कि ऐसा प्यारा आदमी!
इस तरकीब से दीक्षा ली! कहा कि फंक दिया कान! ब्रह्ममुहूर्त में कह दियाः राम-राम। अब और क्या चाहिए! अब कभी न आऊंगा; अब कभी न सताऊंगा; आपको परेशान न करूंगा। लेकिन आपका हो गया। · रामानंद जिससे डरे थे शिष्य बनाने में, उसके दर्शन के लिए पंद्रह सौ ब्राह्मण...। सच्चे ब्राह्मण रहे होंगे। वही तो कबीर में उत्सुक हो सकते हैं। वे इकट्ठे हुए। कबीर को उन्होंने निमंत्रित किया कि आप आएं और धर्म हमें समझाएं।
कबीर आए। वहां पंद्रह सौ पुरुषों को देखा और लौट गए। बड़े हैरान हुए ब्राह्मण। उन्होंने कहाः आप लौट क्यों जा रहे हैं! बात क्या है?
उन्होंने कहाः मीरा कहां है? ___ जो कबीर को सुनने आ गए थे—कबीर जुलाहे को उनकी भी इतनी हिम्मत नहीं थी कि स्त्री को बुलाएं! स्त्री की हालत शूद्र से बदतर रही।।
इसलिए तो तुलसीदास ने उसको शूद्रों में गिना है। शूद्र, ढोल, पशु, नारी-ये सब ताड़न के अधिकारी। तुलसीदास से ज्यादा खतरनाक और बीमार आदमी इस