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________________ एस धम्मो सनंतनो थे। उन्होंने यह फिकर नहीं की कि बुद्ध क्षत्रिय हैं और क्षत्रिय के सामने ब्राह्मण कैसे झुके! ब्राह्मण तो वही है, जो झुकने की कला जानता है। वह क्या फिकर करता है, कौन क्षत्रिय और कौन शूद्र! जहां ब्रह्म अवतरित हुआ है, जहां ब्रह्म का फूल खिला है, जहां वह सहस्रार कमल खिला है, सहस्रदल कमल, और जहां सुगंध व्याप्त हो गयी है-वहां झुकेगा। जो असली ब्राह्मण थे, वे तो झुक गए बुद्ध के पास आकर। वे तो बुद्ध के ध्वज-धर बन गए। लेकिन जो नकली ब्राह्मण थे...। और नकली स्वभावतः ज्यादा हैं। सौ में एकाध असली; निन्यानबे नकली। जो सिर्फ किसी घर में पैदा होने के कारण, नदी-नाव-संयोग के कारण अपने को ब्राह्मण समझते थे। समझते थे कि मेरा बाप ब्राह्मण था, इसलिए मैं ब्राह्मण हूं। इतना आसान है ब्राह्मण होना! कि बाप ब्राह्मण था, तो तुम ब्राह्मण हो गए। तुम्हारे बाप डाक्टर हों, इससे तुम डाक्टर नहीं हो जाते। तो ब्राह्मण कैसे हो जाओगे? यह तो और गहरी बात है। तुम्हारे बाप इंजीनियर थे, इसलिए तुम इंजीनियर नहीं हो जाते। तुम्हारे बाप की जानकारी तक तुम तक नहीं पहुंचती, तो बाप का ज्ञान तो कैसे पहुंचेगा! बाप की जानकारी है कि वे बड़े डाक्टर थे। तो तुम डाक्टर बाप के घर पैदा हुए, तो तुम अपने को डाक्टर थोड़े ही लिखने लगते हो! जैसा यहां हिंदुस्तान में चलता है कि डाक्टर की पत्नी डाक्टरनी कहलाती है। यह बड़े मजे की बात है। तो तुम डाक्टर के बेटे हो, तो तुम अपने को डाक्टर तो नहीं लिखने लगते। तुम जानते हो कि डाक्टर मैं कैसे हो सकता हूं। बाप की जानकारी थी। जानकारी मुझे अर्जित करनी पड़ेगी। जानकारी तक नहीं आती जन्म के साथ, खून में नहीं आती, तो ज्ञान तो कैसे आएगा? ज्ञान का अर्थ होता है, आत्म-अनुभव। स्मृति नहीं उतरती, तो बोध तो कैसे उतरेगा। बोध तो और गहरा है; स्मृति से बहुत गहरा है। __इसलिए जो सोचते थे कि हम ब्राह्मण हैं, क्योंकि ब्राह्मण बाप के घर पैदा हुए हैं; और जो सोचते थे कि हम ब्राह्मण हैं, क्योंकि हमें वेद कंठस्थ हैं; जो सोचते थे कि हम ब्राह्मण हैं, क्योंकि हमें शास्त्र का ज्ञान है-वे बुद्ध के दुश्मन हो गए। क्योंकि जब भी बुद्ध जैसा व्यक्ति पैदा होता है, तब वह सदा शास्त्रों के विपरीत पड़ जाता है। वह परंपरा के विपरीत पड़ जाता है। वह हर जड़ स्थिति के विपरीत पड़ जाता है। तो इन निन्यानबे ब्राह्मणों को तो लगा कि यह दुश्मन है, शत्रु है। यह हमारे धर्म को नष्ट करने को पैदा हुआ है। इसे उखाड़ फेंकें। तो ब्राह्मण पक्ष में भी थे, ब्राह्मण विरोध में भी थे। यह सदा से हुआ है। यहां भी कुछ ब्राह्मण हैं; मगर वे सौ में एक ही होंगे। निन्यानबे तो विरोध में होंगे। झूठे सदा विरोध में होंगे। सच्चे पास आ जाते हैं। फिर वे फिक्र नहीं करते।
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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