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________________ जीने की कला भगवान बुद्ध के विरोधी थे और वे ही उनके ध्वज-धर भी बने। ऐसा क्यों हुआ भगवान? स्वा भा विक है। जो असली ब्राह्मण थे, वे तो बुद्ध के साथ हो लिए। असली ब्राह्मण को तो बुद्ध में ब्रह्म के दर्शन हो गए। ब्राह्मण वही, जिसको ब्रह्म को देखने की कला आती हो। ब्राह्मण वही, जो ब्रह्ममय हो। वे बुद्ध को कैसे चूकते? जो वस्तुतः ब्राह्मण थे; जाति और कुल से ही नहीं, अस्तित्वगत ब्राह्मण थे...। जैसा कि उद्दालक ने अपने बेटे श्वेतकेतु से कहा है। जब श्वेतकेतु लौटा गुरु के आश्रम से, तो बड़ा अकड़ा हुआ लौटा। अकड़ा हुआ लौटा, क्योंकि सब शास्त्रों में पारंगत होकर लौटता था। स्वाभाविक थी अकड़। जवान की अकड़! जैसे विश्वविद्यालय से कोई लौटता है। सोचता है : सब जान लिया। उद्दालक ने उसे देखा खिड़की से, बगीचे में अंदर आते; उसकी अकड़ देखी; उद्दालक उदास हो गए। क्योंकि अकड़ ब्राह्मण को शोभा नहीं देती। आया बेटा। उद्दालक ने पूछा : तू क्या-क्या सीखकर लौटा है ? तो बेटे ने सब शास्त्र गिनाए–कि वेद, उपनिषद, व्याकरण, भाषा, काव्य-सब, जो भी था। दर्शन, धर्म, ज्योतिष, भूगोल, इतिहास, पुराण-जो भी उन दिनों के विषय होंगे, सब उसने गिना दिए। कि सब में पारंगत होकर लौटा हूं; सब में प्रथम कोटि के अंक पाकर लौटा हूं। ये रहे मेरे सर्टिफिकेट! लेकिन बाप ने सब ऐसे सुना, जैसे उसे इसमें कुछ रस नहीं है। उसने कहा : मैं तुझसे यह पूछता हूं कि ब्राह्मण होकर लौटा कि नहीं? श्वेतकेतु ने कहाः ब्राह्मण तो मैं हूं ही। आपका बेटा हूं! तो बाप ने कहा कि नहीं; हमारे परिवार में जन्म से हम ब्राह्मण को नहीं स्वीकार करते। तेरे बाप-दादे, मेरे बाप-दादे, सदा से ब्राह्मणत्व को अनुभव से सिद्ध करते रहे हैं। हम पैदा होने से ब्राह्मण अपने को स्वीकार नहीं करते। हमारे परिवार में जन्मना हम ब्राह्मण को नहीं मानते। तू वापस जा। ब्राह्मण होकर लौट। ___ बेटे ने पूछा ः कमी क्या दिखायी पड़ती है! बाप ने कहा : तेरी अकड़, तेरा अहंकार। साफ है तेरे अहंकार से कि तू अपने को बिना जाने आ गया है। तूने और सब जान लिया, लेकिन अपने को नहीं जाना है; आत्मज्ञान नहीं हुआ है। तू जा। ब्राह्मण होकर लौट। यह ब्राह्मण की परिभाषा देखते हैं। यह ब्राह्मण का अर्थ हुआः ब्रह्म को जानो। भीतर छिपे ब्रह्म को जानो, ताकि बाहर छिपा ब्रह्म भी प्रगट हो जाए; तो ब्राह्मण। तो जो असली में ब्राह्मण थे-जन्म से नहीं; अनुभव से, ज्ञान से, बोध से-वे तो बुद्ध के पास आए, वे तो बुद्ध के प्यारे हो गए। बुद्ध के सारे बड़े शिष्य ब्राह्मण
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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