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________________ जीने की कला यह बड़ी रुग्ण दशा है। इस रुग्ण दशा के बाहर आओ। इसलिए मैंने तुम्हें सुझाव दिया कि आत्मघात पीछे मैं तुम्हें बताऊंगा, ठीक-ठीक कैसे कर लेना । पहले तुम संन्यासी तो हो जाओ ! इतना तो करो। इतनी हिम्मत तो करो। तुममें इतनी भी हिम्मत नहीं है। तुम आत्मघात क्या करोगे ! तुम कम से कम इतना साहस करो कि लोग हंसेंगे कि तुम संन्यासी हो गए, तो हंसने दो। लोग समझेंगे कि पागल हो गए, तो समझने दो। तुम इतनी हिम्मत कर लो, तो फिर मैं तुम्हें ठीक-ठीक विधि बता दूंगा। सच तो यह है कि ठीक विधि तुम्हें सदगुरु के पास ही मिलेगी आत्मघात की । बाकी तो आत्मघात झूठे हैं। शरीर मर जाएगा, फिर पैदा होना पड़ेगा । मैं तुम्हें ऐसी विधि बताऊंगा कि तुम ही मर जाओगे; फिर कभी पैदा न होना पड़ेगा। वह मैं - भाव ही मर जाएगा। आवागमन से छुटकारा हो जाएगा । मैं तुम्हें ऐसी मृत्यु दे सकता हूं कि फिर दुबारा कभी न जन्म होगा और न मृत्यु होगी। छठवां प्रश्न ः N भगवान, शत-शत प्रणाम । तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा नहीं, शिकवा तो नहीं। तेरे बिना जिंदगी जिंदगी नहीं, जिंदगी नहीं। पूछा है मनु और हंसा ने । ऐसा दिखायी पड़ने लगे, तो शुभ घड़ी आ गयी। ऐसी प्रतीति होने लगे कि अब कोई शिकायत नहीं, तो प्रार्थना की पहली किरण उतरी। मैं प्रार्थना कहता ही हूं उसे, उस चित्त की दशा को, जहां कोई शिकायत नहीं है। और अक्सर तुम जाते हो मंदिर में प्रार्थना करने, और सिर्फ शिकायतें करने जाते हो; नाम प्रार्थना होता है। कि मेरी पत्नी बीमार है; कि मेरे बच्चे को नौकरी नहीं लग रही है; कि मेरे पास रहने को मकान नहीं है । और इसको तुम प्रार्थना कहते हो ! ये सब शिकायतें हैं; ये सब शिकवे हैं । यह तुम्हारा ईश्वर के प्रति श्रद्धा का भाव नहीं है। यह तुम ईश्वर के होने पर संदेह उठा रहे हो— कि तेरे होते हुए, और मेरे पास मकान नहीं! अगर तू है, तो मकान होना चाहिए। और अगर मकान नहीं हुआ, तो समझ रख: तू भी नहीं है। भीतर छिपी यह भावदशा है कि मैं तुझे मानूंगा, अगर तू मेरी मांगें पूरी कर दे। अगर तूने मेरी मांगें पूरी नहीं कीं, तो सोच-समझ रख! एक भक्त खोया फिर तूने ! फिर मैं तेरा दुश्मन हो जाऊंगा । 59
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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