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जीने की कला
वह उसके पीछे हो लिया। वह आदमी जाकर अपनी गैरेज में गाड़ी खड़ा किया। जब वह अपनी गैरेज में गाड़ी खड़ा किया, तो इसने जाकर उसकी गाड़ी से टक्कर मार दी! और खिड़की के बाहर सिर निकालकर चिल्लाया कि हद्द हो गयी! संकेत क्यों नहीं दिया कि गाड़ी खड़ी करते हो? उस आदमी ने कहाः हद्द हो गयी! मेरे ही गैरेज में मैं गाड़ी खड़ी करूं और संकेत दूं? किसको संकेत दूं? आप यहां चले कैसे आ रहे हैं?
कितनी देर छिपाओगे? ___ अक्सर लोग ऐसा करते हैं। किसी से पूछे न चुपचाप कोई विधि निकाल लें, किसी के पीछे हो लें; किसी की बात मान लें; कोई किताब पढ़ लें, उसी में से रास्ता निकालकर चल पड़ें।
किसी के गैरेज में जाकर टकराओगे। और अच्छा यही है कि पूछ ही लो। नशा गहरा है। तुमने भी खूब शराब पी रखी है। और तुम्हें भी अपना घर भूल गया है। संकोच मत करो। सहजता और सरलता से जो प्रश्न तुम्हारे हों-पूछ लो।
और मैं यह नहीं कह रहा हूं कि मेरे उत्तर से तुम्हें उत्तर मिल जाएगा। मैं यह कह रहा हूं कि मेरे उत्तर से तुम्हें अपने प्रश्न को देखने की ज्यादा क्षमता आ जाएगी। प्रश्न
को समझने की क्षमता आ जाएगी। प्रश्न के प्रति जागने की बुद्धि आ जाएगी। ___मैं यह नहीं कह रहा हूं कि मेरा उत्तर तुम पकड़ लेना। मैं यह कह रहा हूं कि मेरे उत्तर से तुम्हारे भीतर कुछ रूपांतरण हो सकता है। उत्तर पकड़ लिया, तो कोई सार न होगा। वह तो ऐसे ही हुआ कि तुम दिल्ली जाते थे, रास्ते पर मील का पत्थर लगा था। उस पर लिखा था दिल्ली और तीर बना था आगे की तरफ। तुम पत्थर को ही पकड़कर बैठ गए। तुमने कहा कि अच्छा हुआ, दिल्ली मिल गयी!
उत्तर को पकड़ोगे, तो बस, मील का पत्थर पकड़कर बैठ गए। फिर बैठे रहो। उत्तर तो तीर है, वह आगे की तरफ इशारा करता है। वह कहता है: चलो! कुछ करो! ऐसे हो जाओ, तो समाधान है।
प्रश्न हैं ये उत्तरों तक दौड़ते से प्रश्न। क्या सफर पूरा करेंगे राह में दम तोड़ देंगे ये अकेला छोड़ते से प्रश्न। प्रश्न ये दर्शन कभी कविता कभी तो धर्म साक्ष्य हैं इतिहास के भवितव्य के हैं जन्म ये कभी अनुमान हैं तो
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