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________________ जीने की कला गहराई सघन हुई है और पूछने को अब कुछ बचा नहीं है। दूसरे वे, जो पूछते नहीं हैं इसलिए, कि डरते हैं कि कहीं पूछने से अज्ञान प्रगट न हो जाए। तीसरे वे, जो पूछते हैं इसलिए, और इस तरह के प्रश्न पूछते हैं, जिनसे ज्ञान प्रगट हो, पांडित्यपूर्ण प्रश्न पूछते हैं। और चौथे वे, जो इसलिए पूछते हैं, ताकि वे अपने हृदय को मेरे सामने खोल सकें, जैसा है, बुरा, भला। __ ध्यान रखना : अगर तुम्हारे भीतर प्रश्न उठने बंद हो गए हैं, तब तो शुभ। वह तो सबसे ऊंची बात है। फिर पूछने का सवाल ही नहीं उठता। हैं ही नहीं, तो पूछोगे क्या! अगर यह न हुआ हो, तो दूसरी बात जो चुनने जैसी है वह यह है कि पूछना वही, जो तुम्हारे भीतर वस्तुतः उठता हो। ज्ञान-प्रदर्शन के लिए नहीं, अपने हृदय के आवेदन के लिए। __ और हर चीज तुम्हारे संबंध में खबर देती है। तुम्हारा चलना, तुम्हारा उठना, तुम्हारा पूछना। और अच्छा है कि तुम अपने को प्रगट करते रहो। अच्छा है कि तुम मेरे दर्पण में आकर अपना चेहरा बार-बार देखते रहो। ताकि तुम्हें साफ रहे कि तुम कहां हो, क्या हो, कैसे हो। __ पूछो। सार है बहुत। सार यही है कि तुम्हें तुम्हारी शक्ल बार-बार पता चलती रहे। पता चलती रहे, तो रूपांतरण संभव है। रोज सुबह दर्पण के सामने खड़े होकर पूछते नहीं कि क्या सार है! कल भी तो देखा था; परसों भी तो देखा था। वही का वही तो हूं, बदल क्या गया! लेकिन फिर दर्पण के सामने देखते हो। सच में रोज तुम बदल रहे हो। वही नहीं हो, जो कल था। वही नहीं हो, जो परसों था। बच्चा जवान हो रहा है; जवान बूढ़ा हो रहा है; जिंदगी मौत में ढली जाती है। सब बदल रहा है। ऐसे ही तुम रोज-रोज पूछकर दर्पण के सामने अपने को खड़ा कर लेते हो। तुम्हारा हर प्रश्न, अगर ईमानदारी से भरा हो, तो उसमें बड़ा सार है। हां, पांडित्यपूर्ण प्रश्नों का कोई सार नहीं है। इसलिए मैं उनके उत्तर भी नहीं देता। तुम पूछते भी हो, तो भी उनके उत्तर नहीं देता। एक युवा डाक्टर ने अपनी प्रेमिका से रोमांटिक लहजे में कहाः तुम्हारी आंखों में जीवन का टानिक है। जब उदास होता है, तो तुम्हारा सामीप्य ऐसा महसूस होता है, जैसे आखिरी सांसें गिनते हुए मरीज को आक्सीजन मिल जाए। तुम्हारे घने काले केशों में क्लोरोफार्म जैसी मीठी मदहोशी! तुम्हारे...। बस, उस स्त्री ने कहाः बकवास बंद करो। मैं तुम्हारी प्रेमिका हूं या डिस्पेन्सरी? मगर डाक्टर बेचारा अपना निवेदन कर रहा है! तुम जो कहते हो, जो पूछते हो, उसमें तुम मौजूद रहो तो अच्छा है। चीजें साफ होती हैं। एक जेबकतरा नए फैशन के कपड़ों की किताब देख रहा था। उसके चेले ने 51
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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