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एस धम्मो सनंतनो
जो सूत्र हाथ लगे हैं कि मौत से जीवन मिलता और संन्यास से संसार का सौंदर्य प्रगट होता—इन सूत्रों का उपयोग करते रहे, करते रहे, तो एक दिन विराट बरसेगा। वह घड़ी ही समाधि की घड़ी है।
तीसरा प्रश्नः
प्रश्न पूछने में सार क्या है?
फिर पूछा काहे के लिए! फिर इस पर भी संयम रखते, संवर करते थोड़ा! इसको
भी पूछने में क्या सार है ? यह भी प्रश्न है। . प्रश्न अगर भीतर उठते हैं, तो पूछो या न पूछो, उठते ही रहेंगे। हां, पूछ लेने में एक संभावना है: शायद समझ के कारण गिर जाएं।
ध्यान रखना : यहां जो उत्तर दिए जाते हैं, वे तुम्हारे प्रश्नों को हल कर देंगे, ऐसे उत्तर नहीं हैं। वे तुम्हारे प्रश्नों को सदा के लिए गिरा देंगे, ऐसे उत्तर हैं। जो प्रश्न हल होता है, वह तो शायद कल फिर खड़ा हो जाए। जो आज तुमने किसी तरह समझ लिया कि हल हो गया, वह कल फिर मौजूद हो जाएगा।
तो उत्तरों में मेरा भरोसा नहीं है। मेरा भरोसा तो इस बात में है कि तुम्हारा चित्त निष्प्रश्न हो जाए। पूछ-पूछकर ही होगा। आज पूछोगे, कल पूछोगे। इधर से पूछोगे, उधर से पूछोगे। और मैं तुम्हें हर बार तुम्हीं पर फेंक रहा हूं। मेरा हर उत्तर तुम्हें तुम्हीं पर वापस फेंक देता है।
अनेक बार पूछोगे; जितने प्रश्न पूछते जाओगे, उतने प्रश्न कम होते जाएंगे। नए-नए उठेगे। जल्दी अंत नहीं आने वाला है। मन इतने जल्दी थकता नहीं; नए पैदा करेगा। लेकिन यह अच्छा है कि नए प्रश्न उठे। उनसे नयी ताजगी होगी; नया खून बहेगा।
और जब तुम प्रश्न पूछते हो, तो तुम्हारे चित्त की दशा का सूचन होता है। और अच्छा है कि तुम्हारे चित्त की दशा तुम मेरे प्रति सूचित करते रहो। ___तुम शायद डरते हो पूछने में। तुम्हें शायद यह लगता है कि पूछा तो अज्ञानी मालूम पडूंगा। तो तुम अपने को समझा रहे हो कि सार क्या है! अज्ञानी पूछ रहे हैं। मैं तो ज्ञानी हूं। मुझे तो पता ही है। मुझे क्या पूछना! .
लेकिन तुम्हारे भीतर प्रश्न जरूर हैं। नहीं तो यह सवाल भी नहीं उठता कि प्रश्न पूछने में सार क्या है! ऐसा पूछकर तुम इतना ही कर रहे हो कि अपने भीतर के अज्ञान को छिपा रहे हो। ___ यहां कई तरह के लोग हैं। एक तो वे, जो पूछते नहीं इसलिए, कि ध्यान की
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