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________________ जीने की कला फिर सौंदर्य कितनी देर तुमसे छिप सकता है! तुम जब इतने ठहर जाओगे; जब तुम्हारी जीवन - ज्योति को कोई वासना कंपाएगी नहीं; तुम अकंप हो जाओगे । जैसे दीए को जलाते हो; हवा के झोंके उसे कंपाते हैं, ऐसे ही तुम्हारे भीतर की जो चेतना का दीया है, उसे वासना के झोंके कंपाते हैं। जब कोई वासना नहीं रह जाती, दीए की ज्योति थिर हो जाती है। उस थिरता में ही कुंजी है । ठीक कहा मंजु - गुलाब ने कि 'संन्यास में दीक्षित करके आपने हमें संसार का परम सौंदर्य प्रदान किया ।' मैं संसार - विरोधी नहीं हूं; मैं जीवन - विरोधी नहीं हूं। मेरा संन्यास जीवन को जानने की कला है । जीवन को त्यागने की नहीं, जीवन के परम भोग की कला है। मैं तुम्हें भगोड़ा नहीं बनाना चाहता । भगोड़ापन तो कायरता है। जो संसार से भागते हैं, वे कायर हैं। वे डर गए हैं। वे कहते हैं : यहां रहे, तो फंस जाएंगे। यह सौ का नोट उन्हें दिखायी पड़ा कि उनके भीतर एकदम उथल-पुथल मच जाती है कि अब नहीं बचा सकेंगे अपने को । यह सौ का नोट डुबा लेगा ! यह सुंदर स्त्री जाती है। अब भागो यहां से, अन्यथा इसके पीछे लग जाएंगे ! मगर यह आदमी, जो नोट देखकर लार टपकाने लगता है, यह आदमी जो सुंदर स्त्री को गुजरते देखकर एकदम होश खो देता है, यह पहाड़ पर भी बैठ जाएगा, तो क्या होगा! यह आदमी यही का यही रहेगा। यह पहाड़ पर बैठकर भी क्या सोचेगा ? आंख बंद करेगा – सौ के नोट तैरेंगे! आंख बंद करेगा - सुंदर स्त्रियां खड़ी हो जाएंगी। और ध्यान रखना ः कोई स्त्री इतनी सुंदर नहीं है, जितनी जब तुम आंख बंद करते हो तब सुंदर हो जाती है, क्योंकि वह कल्पना की स्त्री होती है। वास्तविक स्त्री में तो कुछ झंझटें होती हैं। और जितनी सुंदर हो, उतनी ज्यादा झंझटें होती हैं। क्योंकि उतनी कीमत चुकानी पड़ती है। जितना बड़ा सौंदर्य होगा, उतनी कीमत स्त्री मांगेगी। लेकिन कल्पना की स्त्री तो सुंदर ही सुंदर होती है। वह तो बनती ही सपनों से है । और तुम्हारे ही सपने हैं, तुम जैसा चाहो बना लो। नाक थोड़ी लंबी, तो लंबी । छोटी कर दो नाक, तो छोटी । या छोटी है, तो थोड़ी लंबी कर दो। मैंने सुना है : : एक स्त्री ने रात सपना देखा कि आ गया राजकुमार, जिसकी प्रतीक्षा थी; घोड़े पर सवार । उतरा घोड़े से । घोड़ा भी कोई ऐसा-वैसा घोड़ा नहीं रहा होगा। रहा होगा चेतक । शानदार घोड़े से उतरा शानदार राजकुमार । जब सपना ही देख रहे हो, तो फिर अच्चर - खच्चर पर क्या बिठाना ! अपना ही सपना है, तो चेतक पर बिठाया होगा । और राजकुमार ही आया। फिर राजकुमार भी रहा होगा सुंदरतम । अब जब सपना ही देखने चले हैं, तो इस में क्या कंजूसी, क्या खर्चा ! मुफ्त सपना है; अपना सपना है ! उतरा राजकुमार। सुंदर देह उसकी। नील वर्ण । रहा होगा कृष्ण जैसा । उठाया गोद में इस युवती को । बिठाया घोड़े पर । जैसे पृथ्वीराज संयोगिता को ले भागा। पढ़ी होगी 47
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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