________________
एस धम्मो सनंतनो
स्मृति कैसे जगेगी?
इसलिए यह विरोधाभास घटता है। संन्यासी जान पाता है संसार के सौंदर्य को। और संसार के सौंदर्य को जानने की क्षमता पैदा ही तब होती है, जब तुम्हारा संसार से कुछ लेना-देना नहीं है। जब तुम अलिप्त भाव से खड़े हो गए; जब तुमने कहा, जो है, ठीक है। जैसा है, शुभ है। अहोभाग्य कि मैं अभी श्वास ले रहा हूं। अहोभाग्य कि मेरी आंखें हैं और मैं रंग-रूप देख सकता हूं। अहोभाग्य कि मेरे पास कान हैं और पक्षियों के गीत सुनायी पड़ते हैं। और कोई वीणा छेड़ता है, तो मेरे प्राण संगीत से भर जाते हैं। अहोभाग्य!
फिर चारों तरफ तुम्हें वीणा छिड़ती हुई मालूम पड़ेगी। प्रकृति सब तरफ मृदंग लिए नाच रही है। यहां नाच चल रहा है, अपरिसीम नाच चल रहा है। हर चीज नाच रही है। नृत्य...। लेकिन देखने वाले को थोड़ी सी क्षमता तो होनी चाहिए।
और एक बात है : तुम उतना ही जान सकते हो, जितनी तुम्हारी गहराई बढ़ जाती है। जैसे-जैसे तुम्हारा ध्यान गहरा होता है, वैसे-वैसे तुम्हारी दृष्टि प्रकृति में गहरी उतरती है। तब स्थूल विलीन होने लगता है और सूक्ष्म का दर्शन होने लगता है।
संन्यास का अर्थ क्या है? संन्यास का अर्थ है : जो है, उससे मैं तप्त हूं। और जो है, उससे जब तुम तृप्त हो, तो गयी भाग-दौड़, गयी आपा-धापी। फिर न कहीं जाना, न कहीं पाना, न कुछ होना।
संन्यासी का मतलब यह नहीं कि वह स्वर्ग पाने में लगा है। वह तो फिर दुकानदार ही है। फिर भी संसारी रहा वह। संन्यासी का अर्थ यह नहीं कि अब परमात्मा को पाना है; कि अब परमात्मा को पाकर रहेंगे। यह तो फिर नयी तुमने खाते-बही खोल दिए। तुमने नया बैंक-बैलेंस खोल दिया-परलोक में; मगर उपद्रव शुरू हो गया। पहले धन कमाते थे; अब पुण्य कमाने लगे। पहले धन के सिक्के इकट्ठे करते थे; अब पुण्य के सिक्के इकट्ठे करने लगे। यह तो कुछ फर्क न हुआ। यह तो बीमारी का नाम बदला, बस। जहर वही का वही; शायद और भी गहरा हो गया; और भयंकर हो गया।
संन्यासी का अर्थ है : जिसने खोज ही छोड़ दी। जिसने कहाः खोजने को क्या है? जो है, मिला हुआ है। जिसने कहाः जाना कहां है? सब यहीं है। जिसने कहाः न कैलाश जाऊंगा, न काबा। यही स्थल, जहां मैं बैठा हूं-कैलाश। यही स्थल, जहां मैं बैठा हूं-काबा। अब किताबों में न खोजूंगा; अब आंख बंद करूंगा, अपने में खोजूंगा। आंख खोलूंगा और प्रकृति में खोजूंगा। लोगों की आंखों में झांदूंगा। मुर्दा किताबों में क्या होगा! जिंदा किताबें मौजूद हैं। ये चलते-फिरते कुरान! ये चलती-फिरती बाइबिलें! ये चलते-फिरते गुरुग्रंथ! ये चलते-फिरते वेद! इनमें झांदूंगा। इनसे दोस्ती बनाऊंगा। इनके साथ नाचूंगा।
संन्यासी का अर्थ है : जिसके लिए यही क्षण सब कुछ है।
46