________________
जीने की कला
बुद्ध ने जब कहा—कोई ईश्वर नहीं है, तो बुद्ध ने तुम्हारे जीवन में ईश्वरत्व की घोषणा कर दी।
दूसरा प्रश्न :
भगवान, संन्यास में दीक्षित करके आपने हमें संसार का परम सौंदर्य प्रदान किया। मृत्यु सिखाते हुए जीवन का प्रेमपूर्ण उल्लास दिया। आज हम दोनों हमारी पच्चीसवीं लग्न-तिथि पर आपके दिव्य चरणों में नृत्य करते हुए बहुत-बहुत अनुगृहीत हैं। आपकी कला अपरंपार है। भाव को प्रगट करने में वाणी असमर्थ है। आपके चरणों में हमारे शत-शत प्रणाम।
पूछा है मंजु और गुलाब ने।
. ऐसा ही है। जीवन का सत्य बड़ा विरोधाभासी है। अगर मरने की तैयारी हो, तो जीवन का अनुभव होता है। और अगर दुख को अंगीकार कर लेने की क्षमता हो, तो सुख के मेघ बरस जाते हैं। और अगर जीवन में कोई वासना न रह जाए, तो जीवन अपने सब चूंघट उघाड़ देता है। जो कुछ नहीं चाहता, उसे सब मिल जाता है। और जो सब की मांग करता रहता है, उसे कुछ भी नहीं मिलता।
जीवन का गणित बहुत बेबूझ है, रहस्यपूर्ण है। ऐसा ही है।
मंजु और गुलाब ने कहाः 'संन्यास में दीक्षित करके आपने हमें संसार का परम सौंदर्य प्रदान किया। _____ संन्यासी ही जान सकता है संसार के सौंदर्य को; संसारी नहीं जान सकता। क्योंकि संसारी इतना लिप्त है, इतना डूबा है गंदगी में, दूर खड़े होने की क्षमता नहीं है उसकी। वह दूर खड़े होकर देख नहीं सकता। और मजा तो दूर खड़े होकर देखने में है।
तुम जब बहुत व्यस्त होते हो संसार में, तो संसार का सौंदर्य देखने की सुविधा कहां! फूल खिलते हैं, मगर तुम्हें दिखायी नहीं पड़ते। चांद-तारे आते हैं, मगर तुम्हें दिखायी नहीं पड़ते। तुम अपनी दुकान में सिर झुकाए अपने खाता-बही में लगे हो। तुम्हें समय कहां, सुविधा कहां, अवकाश कहां कि तुम फूलों से दोस्ती करो; कि पहाड़ों से नमस्कार करो; कि नदियों के साथ बैठो; कि वृक्षों से बात करो। तुम्हें फुरसत कहां? तुम्हें अपनी तिजोड़ी से फुरसत कहां?
तिजोड़ी से तुम्हारा वार्तालाप बंद हो, तो चांद-तारों की तरफ आंख उठे। तुम क्षुद्र में उलझे हो, तो विराट की सुधि कैसे लोगे? उसकी सुरति कैसे आएगी; उसकी
45