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________________ जीने की कला को। चलो, इसकी खुशामद करें, स्तुति करें। इसको प्रसन्न कर लें किसी तरह, तो अपने लिए कुछ विशेष आयोजन हो जाएगा। अपने पर दया हो जाएगी। इसकी अनुकंपा अपने को मिल जाए, तो हम दूसरों से आगे निकल जाएंगे-धन में, ध्यान में। तो हमारी जो मांगें हैं, हम इससे पूरी करवा लेंगे। चलो इसके पैर दबाएं। चलो, इससे कहें कि हम तुम्हारी चरण-रज हैं। तो दिशा गलत हो गयी। दिशा वासना की हो गयी। ईश्वर को मानते ही कि ईश्वर आकाश में बैठा है मनुष्य की भांति, स्वभावतः तो जो मनुष्य की कमजोरियां हैं, वे ईश्वर में भी आरोपित हो जाएंगी। ___मनुष्य को खुशामद से राजी किया जा सकता है, तो ईश्वर को भी खशामद से राजी किया जा सकता है। अगर मनुष्य को खुशामद से राजी किया जा सकता है, तो ईश्वर को थोड़ी और सुंदर खुशामद चाहिए; उसका नाम स्तुति! अगर मनुष्य को रिश्वत दी जा सकती है, तो ईश्वर को भी रिश्वत दी जा सकती है। जरा देने में ढंग होना चाहिए; जरा कुशलता और प्रसादपूर्वक। और अगर आदमी से अपनी मांगें पूरी करवायी जा सकती हैं, चाहे वे न्यायसंगत न भी हों, तो फिर ईश्वर से भी पूरी करवायी जा सकती हैं। __तुम चकित होओगेः दुनिया के धर्म-शास्त्रों में ऐसी प्रार्थनाएं हैं, जो कि धर्म-शास्त्रों में नहीं होनी चाहिए। अधार्मिक प्रार्थनाएं हैं। मगर वे सूचक हैं, इस बात की कि अगर ईश्वर को मनुष्य की तरह मानोगे, तो यह उपद्रव होने वाला है। वेद में ऐसी सैकड़ों ऋचाएं हैं, जिनमें प्रार्थना कर रहे हैं ऋषि कि हमारे दुश्मन को मार डालो। यहीं तक नहीं, हमारी गाय के थन में दूध बढ़ जाए और दुश्मन की गाय के थन में दूध बिलकुल सूख जाए। ये किस तरह की प्रार्थनाएं हैं! कि हमारे खेत में इस बार खूब फसल आए और पड़ोसी का खेत बिलकुल राख हो जाए। ये किस तरह की प्रार्थनाएं हैं! और वेद में! मगर ये खबर देती हैं कि अगर ईश्वर को आदमी की तरह मानोगे, तो तुम उससे जी प्रार्थनाएं करोगे, वह भी आदमी की तरह होंगी। यह आदमी की असलियत है। मंदिर भी जाता है, तो क्या मांगता है? कुरान में भी इस तरह के वचन हैं और बाइबिल में भी। सुंदर नहीं हैं। इस अर्थ में बुद्ध ने बड़ी क्रांतिकारी दृष्टि दी। बुद्ध ने कहाः हटाओ इस ईश्वर को। इसके कारण वेद की ये अभद्र ऋचाएं पैदा होती हैं। इसके कारण आदमी के भीतर की बेहूदी आकांक्षाओं को सहारा मिलता है। ईश्वर को हटा दो। ईश्वर की जगह नियम को स्थापित किया बुद्ध ने धर्म में। अब नियम से कोई प्रार्थना थोड़े ही कर सकते हो। किसी को तुमने गुरुत्वाकर्षण से प्रार्थना करते देखा—कि आज जरा घर के बाहर जा रहा हूं; हे गुरुत्वाकर्षण! रास्ते पर गिरा मत देना! टांग मत तोड़ देना! क्योंकि और लोगों के, कई के फ्रैक्चर हो गए हैं; मुझे न
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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