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________________ एस धम्मो सनंतनो कोई दशा होगी! तुम जैसे हो, अगर ऐसे ही रह जाओ; सदा-सदा के लिए ऐसे ही, जैसे तुम हो; ठहर जाओ। तुमने सोचा भी नहीं है, नहीं तो तुम घबड़ा जाओगे। तुम कहने लगोगेः नहीं प्रभु! भूल हो गयी। यह प्रार्थना वापस लेता हूं। ऐसा ही रह जाऊंगा-ठहरा, रुका, अवरुद्ध ! कष्टपूर्ण हो जाएगा। नहीं; मुझे जाने दो, नए को आने दो। __ संसार है—मैं जैसा हूं, वैसे ही रहने की आकांक्षा। संन्यास है-जैसा हो, वैसा ही हो जाने की तत्परता। जैसा हो! आज आदमी, तो आदमी; कल कब्र में पड़ोगे और घास बनकर उगोगे। हरी घास कब्र पर परम सुंदर है। आदमी से थक नहीं गए ? घास नहीं होना है? घास का फूल नहीं बनना है? आज आदमी हो, कल आकाश में बादल होकर मंडराओ। आज आदमी हो, कल एक तारे होकर चमको। आज आदमी हो, कल एक गौरैया होकर गीत गाओ सुबह-सुबह सूरज के स्वागत में। आज आदमी हो, कल गुलाब का फूल बनो-कि कमल बनकर किसी सरोवर में तैरो। आदमी ही रहोगे! इसी लहर के साथ जड़? जड़ता को पकड़ लोगे? आज पुरुष हो, कल स्त्री; आज स्त्री हो, कल पुरुष। रूप को बहने दो; धारा को बहने दो। इस सरिता को रोको मत, अवरुद्ध मत करो। जो हो, उसका स्वीकार, तथाता-संन्यास। जैसा मैं हूं, बस ऐसा ही रहे सदा, ऐसी जड़ आग्रह की अवस्था, ऐसा दुराग्रह-संसार। संसार में अगर दुख मिलता है, तो इसीलिए दुख मिलता है, क्योंकि जो नहीं हो सकता, उसकी तुम मांग करते हो। और संन्यासी अगर सुखी है, प्रफुल्लित है, आनंदित है, तो कोई खजाना मिल गया है उसे। वह खजाना क्या है? वह खजाना यही है कि जो होता है, वह उसी के साथ राजी है। जैसा होता है, उसमें रत्तीभर भिन्न नहीं चाहता। भिन्न की आकांक्षा गयी। उसकी कोई वासना नहीं है। वह कुछ मांगता नहीं है। वह प्रतिपल जीता है आनंद से। जवान है, तो जवानी में प्रसन्न है; और बच्चा था, तो बचपने में प्रसन्न था; और बूढ़ा हो जाएगा, तो बुढ़ापे का सुख लेगा। जीता था, तो जीने का गीत देखा, और जीने का नाच; और मरेगा, तो मृत्यु का नाच देखता हुआ मरेगा। जहां है, जैसा है, उससे अन्यथा या कहीं और होने की आकांक्षा नहीं है। ऐसी जब दशा बन जाएगी, तो जो तुम्हें ज्ञान होता है, उसका नाम धर्म है। फिर तुम्हें सागर का पता चलता है। तरंगों से तुम मुक्त हो गए; लहरों से मुक्त हो गए। और निश्चित ही सागर शाश्वत है। बुद्ध ने उसी को धर्म कहा है, जिसको दूसरों ने ईश्वर कहा है। बुद्ध ने उसी को धर्म कहा है, जिसको दूसरों ने आत्मा कहा है। लेकिन आत्मा और ईश्वर के साथ ज्यादा खतरा है। धर्म के साथ उतना खतरा नहीं है। ईश्वर का मतलब हो जाता है : कोई बैठा है आकाश में, चला रहा है सारे जगत 42
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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