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________________ जीने की कला ही न था; पत्थर पत्थर ही था। सिर्फ दोहराने से तुम भ्रांति में पड़े थे। सब चीजें तुमने झूठ कर डाली हैं। तुमने धर्म भी झूठ कर डाला है। इसलिए बुद्ध कहते हैं: न तो ईश्वर को मानने की जरूरत है; न आत्मा को मानने की जरूरत है। मानने की जरूरत ही नहीं है। मानने की जड़ काटने के लिए उन्होंने कहा, ईश्वर नहीं है, आत्मा नहीं है। ऐसा नहीं कि ईश्वर नहीं है। ऐसा नहीं कि आत्मा नहीं है। ऐसा तो बुद्ध कैसे कहेंगे! बुद्ध जानते हैं। ___ लेकिन तुम्हारी भ्रांतियां बहुत हो चुकी और उनकी जड़ काटनी जरूरी है। और एक ही तरह से जड़ कट सकती है कि बुद्ध जैसा पुरुष कह दे कि नहीं कोई ईश्वर है; और नहीं कोई आत्मा है; ताकि तुम झकझोरे जाओ; ताकि तुम्हारी भ्रांति के बाहर तुम आओ; ताकि तुमने जो झूठ निर्मित कर लिए हैं, और झूठों के आधारों पर जो भवन खड़े कर लिए हैं, वे गिर जाएं। तुम्हारे ताश के पत्तों से बने घर को फूंक मारी बुद्ध ने। तुम्हारी कागज की नावों को डुबा दिया तुम्हारे सामने; बेरहमी से डुबा दिया। इसलिए तो यह देश बुद्ध को माफ नहीं कर पाया। इस देश ने बुद्ध को इस देश से ही उखाड़ फेंका। जो तुम्हारे ताश के महलों को गिराएगा, उससे तुम नाराज हो ही जाओगे। जो तुम्हारे सपनों को तोड़ेगा और तुम्हें नींद से उठाएगा, उसके तुम दुश्मन हो ही जाओगे। और जैसा अथक प्रयास बुद्ध ने किया, किसी और ने कभी नहीं किया। बुद्ध की चोट संघातक है। जो हिम्मतवर थे और जिन्होंने झेल ली अपनी छाती पर, वे नए हो गए, उनका नया जन्म हो गया। जो कमजोर थे, वे क्रुद्ध हो गए। जो कमजोर थे, उन्होंने बदला लिया। बुद्ध के सामने तो न ले सके; लेकिन बुद्ध के जाने पर बदला लिया। जिस देश में बुद्ध जैसा व्यक्ति पैदा हआ, उस देश में बौद्धों का नाम मात्र न बचा! यह कैसे हुआ होगा? जरूर इस देश के मन में बड़ी प्रतिक्रिया हुई होगी-कि हमारा भगवान झूठ? हमारी आत्मा झूठ? हमारे शास्त्र झूठ? हमारे वेद झूठ! हम झूठ! सब झूठ! सिर्फ यह एक आदमी गौतम बुद्ध सच! ऐसा बुद्ध ने कहा नहीं था कि सिर्फ मैं सच। बुद्ध ने इतना ही कहा थाः मान्यता झूठ; जानना सच। विश्वास झूठ; बोध सच। यही बुद्धत्व के धर्म का सार है। बोध सच। जागो। जागकर देखो। मानकर मत देखो, क्योंकि मानकर देखने से तो तुम्हारी आंख पर चश्मा हो जाता है—मानने का चश्मा! तुमने मान लिया कि जगत लाल है। और मानते चले गए। और लाल को ही देखते चले गए; देखने की चेष्टा करते रहे; सम्हालते रहे। इसी को तो लोग साधना कहते हैं-लाल को देखने की चेष्टा! फिर एक दिन तुम्हें लाल दिखायी पड़ने लगा। हरे वृक्ष लाल मालूम होने लगे! नीला आकाश लाल मालूम होने लगा। तब तुमने समझा कि अब पहुंच गए। 39
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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