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________________ एस धम्मो सनंतनो दोहराते रहे कि ईश्वर है, दोहराते रहे कि ईश्वर है— मंदिर और मस्जिद में, और गिरजे और गुरुद्वारे में – तो धीरे-धीरे भूल ही जाओगे कि मुझे पता नहीं है। बार-बार दोहराने से ऐसी प्रतीति होने लगेगी कि हां, ईश्वर है । मगर यह तुम्हारी पुनरुक्ति है । यह तुम्हारा ही मनोभाव है, जो सघन हो गया। यह आत्म-सम्मोहन है। यह आटो - हिप्नोसिस है । यह केवल संस्कार मात्र है। तुम कहीं पहुंचे नहीं। तुम बदले नहीं । तुम्हारे जीवन में कोई क्रांति नहीं हुई । तुम वैसे के वैसे हो। सिर्फ तुमने एक आवरण ओढ़ लिया। तुमने राम-नाम चदरिया ओढ़ ली । भीतर तुम ठीक वैसे हो, जैसे पहले थे। तुमने विश्वास का वस्त्र ओढ़ लिया। किसको धोखा दे रहे हो? और तुमने मूलतः अपने को एक भ्रांति और झूठ के साथ बांध लिया। जिस दिन पहली बार तुमने माना कि ईश्वर है - वह झूठ था, क्योंकि तुमने बिना जाने माना था। तुमने बेईमानी की हद्द कर दी ! तुम संसार में धोखा-धड़ी करते थे – ठीक। तुम बाजार-दुकान पर धोखा-धड़ी करते थे— ठीक | तुम मंदिर में भी अपना झूठ ले आए ! तुम तो न बदले मंदिर में आकर तुमने मंदिर का ही रूप बदल दिया ! मंदिर भी विकृत हुआ, भ्रष्ट हुआ तुम्हारे साथ। तुम तो नतर सके नाव को लेकर; नाव को डुबा बैठे ! आप डुबंते पांडे, ले डूबे जजमान ! और जब पहले दिन ही बात झूठ थी, तो दोहराते - दोहराते अंतिम दिन कैसे सच हो जाएगी ? झूठ दोहराने से सच होता है? लाख दोहराओ, झूठ झूठ है। लेकिन झूठ दोहराने से प्रतीत होता है कि सच हो गया । अडोल्फ हिटलर ने यही अपनी आत्मकथा मेन कैम्फ में लिखा है कि झूठ को दोहराते जाओ, दोहराते-दोहराते एक दिन सच हो जाता है। सुनो ही मत किसी की; दोहराते जाओ। बार-बार सुनने से लोगों को भरोसा आने लगता है कि सच ही होगा - जब इतनी जगह दोहराया जा रहा है; इतने लोग दोहरा रहे हैं; इतने मंदिर-मस्जिद, इतने पंडित-पुरोहित, इतने मौलवी दोहरा रहे हैं एक ही बात । मां-बाप, स्कूल, समाज, संस्कृति — सब दोहरा रहे हैं : ईश्वर है । इस दोहराने वालों की जमात में तुमने भी दोहराना शुरू कर दिया। और धीरे-धीरे लगेगा कि सच हो गया है। लेकिन झूठ कभी सच नहीं होता । दोहराने से कैसे कोई बात सच हो सकती है ! तुम लाख दोहराते रहो कि यह पत्थर गुलाब का फूल है । पत्थर पत्थर है, गुलाब का फूल नहीं होगा। लेकिन यह हो सकता है कि बहुत बार दोहराने से तुम्हें गुलाब का फूल दिखायी पड़ने लगे। वह झूठा गुलाब का फूल होगा। वह सपना है, जो तुमने पत्थर पर आरोपित कर लिया। कुछ दिन मत दोहराओ, फिर पत्थर पत्थर हो जाएगा। पत्थर कभी कुछ और हुआ 38
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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