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एस धम्मो सनंतनो
कहीं नहीं पहुंचे। तुम और भटक गए। तुम और गिर गए। तुम जहां थे, वहां से भी पीछे फिंक गए।
आंख खोलो और विश्वासों की धूल झाड़ दो। बुद्ध का संदेश सीधा-साफ है। आंख हो और विश्वास-मुक्त हो। चैतन्य हो और संस्कार-मुक्त हो। बोध हो और विचार-मुक्त हो। बस, फिर जो है, वही दिखायी पड़ जाएगा।
जो है, उसको बुद्ध ने नाम भी नहीं दिया, क्योंकि नाम देना खतरनाक है। तुम इतने खतरनाक लोग हो कि नाम देते ही नाम को पकड़ लेते हो। जिसको नाम दिया है, उसको तो भूल ही जाते हो। इसलिए बुद्ध ने कहा-जो है। __उस जो है का स्वभाव ही धर्म है। बिना विचार के जगत को देखना धर्म को जानना है। निर्विचार भाव में अस्तित्व को अनुभव करना धर्म की प्रतीति है, धर्म का साक्षात्कार है।
परमात्मा नहीं है, आत्मा नहीं है सिर्फ इसीलिए कहा बुद्ध ने कि अगर ये हैं-ऐसा कहो, तो तुम्हारी पुरानी झूठी धारणाओं को सबलता मिलती है, बल मिलता है। ___ मैं भी रोज यही करता हूं। चेष्टा करता हूं कि तुम्हारी पुरानी धारणा टूट जाए।
और ऐसा नहीं है कि तुम्हारी पुरानी धारणा गलत ही होनी चाहिए। धारणा गलत है। यह हो सकता है, ईश्वर है। लेकिन ईश्वर को मानने की वजह से तम नहीं देख पा रहे हो। ईश्वर के मानने को छीन लेना है, ताकि जो है, वह प्रगट हो जाए।
फिर दोहराएं: कमजोर आदमी मानता है। कायर मानते हैं। जिनमें थोड़ा साहस है, हिम्मत है, वे जानने की यात्रा पर चलते हैं।
जानने की यात्रा पर बड़े साहस की जरूरत है। सबसे बड़ा साहस तो यही है कि अपनी सारी मान्यताओं को छोड़ देना है। मान्यताओं को छोड़ते ही तुम्हें लगेगा कि तुम अज्ञानी हो गए। क्योंकि तुम्हारी मान्यताओं के कारण तुम ज्ञानी प्रतीत होते थे। एकदम नग्न हो जाओगे, अज्ञानी हो जाओगे। सब हाथ से छूट जाएगा, सब संपदा तुम्हारे तथाकथित ज्ञान की। इसलिए हिम्मत चाहिए।
धन छोड़ने के लिए इतनी हिम्मत की जरूरत नहीं है, क्योंकि धन बाहर है। ज्ञान छोड़ने के लिए सबसे बड़े हिम्मत की जरूरत है, क्योंकि ज्ञान भीतर बैठ गया है। धन तो ऐसा है, जैसे वस्त्र किसी ने पहने हैं। फेंक दिए। नग्न हो गया। ज्ञान ऐसे है, जैसे हड्डी-मांस-मज्जा-चमड़ी; उखाड़ो, अलग करो-बड़ी पीड़ा होती है।
इसलिए लोग धन को छोड़कर जंगल चले जाते हैं, लेकिन ज्ञान को साथ ले जाते हैं। हिंदू जंगल में बैठकर भी हिंदू रहता है ! जैन जंगल में बैठकर भी जैन रहता है। मुसलमान जंगल में बैठकर भी मुसलमान रहता है। क्या मतलब हुआ? संस्कार तो साथ ही ले आए।
कहते होः समाज को छोड़ दिया। क्या खाक छोड़ा! जिस समाज ने तुम्हें ये
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