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एस धम्मो सनंतनो
'हे भिक्षु! इस नाव को उलीचो; उलीचने पर यह तुम्हारे लिए हलकी हो जाएगी।'
किस नाव की बात कर रहे हैं? यह जो मन की नाव है, इसको उलीचो। इसमें कुछ न रह जाए। इसमें कामना न हो, वासना न हो, महत्वाकांक्षा न हो। इसमें खोज न हो, इसमें मांग न हो, इसमें प्रार्थना न हो। इसमें विचार न हों, इसमें भाव न हों। इसमें कुछ भी न बचे। उलीचो भिक्षुओ। सिञ्च भिक्खु! इस नाव से सब उलीच दो। इस नाव को बिलकुल खाली कर लो, शून्य कर लो। यह तुम्हारे लिए हलकी हो जाएगी।
'राग और द्वेष को छिन्न कर फिर तुम निर्वाण को प्राप्त हो जाओगे।'
यह नाव हलकी हो जाए, इतनी हलकी कि इसमें कोई वजन न रह जाए, तो इसी क्षण निर्वाण उपलब्ध हो जाता है। शून्य मन का ही दूसरा नाम है-निर्वाण। जहां मन शून्य है, वहां सब पूर्ण है। जहां मन भरा है, वहां सब अधूरा है। ___ 'जो पांच को काट दे भिक्षुओ! पांच को छोड़ दे भिक्षुओ! पांच की भावना करे भिक्षुओ! और पांच के संग का अतिक्रमण कर जाए भिक्षुओ! उसी को बाढ़ को पार कर गया भिक्षु कहते हैं। वही उस पार चला गया।'
ये पांच क्या हैं? जो पांच को काट दे भिक्षुओ-पञ्च छिन्दे।
पांच चीजें बुद्ध ने काटने योग्य कही हैं: सत्काय दृष्टि—कि मैं शरीर हं: विचिकित्सा, संदेह, श्रद्धा का अभाव; शीलव्रत परामर्श-दूसरों को सलाह देना शील और व्रत की और स्वयं अनुगमन न करना; काम-राग और व्यापाद-सदा कामना से भरे रहना, यह पा लूं, वह पा लूं। ऐसा हो जाऊं, वैसा हो जाऊं। व्यापाद-और सदा व्यस्त; कभी क्षणभर को विराम नहीं। ये पांच चीजें छेद देने जैसी हैं। इनको छेद्य-पंचक कहा।
फिर पांच को छोड़ दे जो-हेय-पंचक। रूप-राग, अरूप-राग, मान, औद्धत्य और अविद्या।
रूप का आकर्षण। पानी पर उठे बबूले जैसा है रूप। सुबह फूल खिला, सांझ गया। अभी कोई सुंदर था, युवा था, अभी बूढ़ा हो गया।
अरूप रागः और ऐसा न हो कि रूप से राग छूटे, सौंदर्य से राग छुटे, तो तुम असौंदर्य से राग को बांध लो; कुरूप का राग करने लगो। वह भी भूल हो गयी। ऐसे लोग भी हैं, जो रूप से राग छोड़ देंगे, तो अरूप के राग में पड़ जाएंगे। वह भी छूट जाना चाहिए। ___मान-अहंकार। औद्धत्य-जिद्द, हठ, और अविद्या। अविद्या का अर्थ है, स्वयं को न जानना। इन पांच को हेय-पंचक।
और फिर पांच को कहा है-भावना। इनकी भावना करनी। भाव्य-पंचक।