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संन्यास की मंगल-वेला
पंख पा जाए और आकाश में उड़े।
उनके आनंद की कोई सीमा नहीं थी। क्योंकि कोई चोरी करता रहे-कितनी ही चोरी करे, और कितना ही कुशल हो, और कितना ही सफल हो, और कितना ही धन इकट्ठा करे – चोरी काटती है भीतर । चोरी दंश देती है। कुछ मैं बुरा कर रहा हूं, यह पीड़ा तो घनी होती है। पत्थर की तरह छाती पर बैठी रहती है।
चोर जानता है— चोर नहीं जानेगा, तो कौन जानेगा — कि कुछ गलत मैं कर रहा हूं। करता है; करता चला जाता है । जितना करता है, उतना ही गलत का बोझ भी बढ़ता जाता है। आज सब बोझ उतर गया।
संन्यस्त हुए वे ; दीक्षित हुए वे । वे अति आनंदित थे । वे प्रव्रजित हो एकांत में वास करने लगे, मौन रहने लगे; ध्यान में डूबने लगे । संसार उन्होंने पूरी तरह देख लिया था, सब तरह देख लिया था । बुरा करके, भला करके, सब देख लिया था । अब करने को कुछ बचा नहीं था। अब वे न करने में उतरने लगे।
एकांत का अर्थ है न-करना । मौन का अर्थ है न करना । ध्यान का अर्थ है न करना। अब वे शांत शून्य में डूबने लगे ।
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उन्होंने शीघ्र ही ध्यान की शाश्वत संपदा पायी । बौद्ध कथा तो ऐसा कहती है कि बुद्ध को आकाश से उड़कर जाना पड़ा। मैंने छोड़ दिया उस बात को । तुम्हें भरोसा न आऐगा। नाहक तुम्हें शंका के लिए क्यों कारण देने। लेकिन कहानी मीठी है। इसलिए एकदम छोड़ भी नहीं सकता; याद दिलाऊंगा ही ।
कहानी तो यही है कि उन चोरों ने जंगल में बैठकर... । उन्होंने बुद्ध को देखा ही नहीं। उन्होंने तो उपासिका को गुरु मान लिया । उपासिका के माध्यम से उसके बेटे सोण से दीक्षित हो गए। उन्होंने बुद्ध को देखा नहीं है। लेकिन उनकी प्रगाढ़ ध्यान की दशा - बुद्ध को जाना पड़ा हो आकाश मार्ग से तो कुछ आश्चर्य नहीं । करोगे क्या, जाना ही पड़ेगा ।
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मैं यह नहीं कह रहा हूं कि आकाश मार्ग से गए ही होंगे। मगर जो मैं कह रहा हूं, वह यह कि बुद्ध को जाना ही पड़ेगा । इतने ध्यान की गहराई और ऐसे साधारणजनों में, ऐसे पापियों में ! बुद्ध खिंचे चले आए होंगे। आना ही पड़ा होगा।
आकाश मार्ग से आने की कथा इतना ही बताती है कि बुद्ध को उड़कर आना पड़ा। इतनी जल्दी आना पड़ा कि शायद पैदल चलकर आने में देर लगेगी, उतनी देर नहीं की जा सकती । और ये चोर – इसलिए कहता हूं इनको, भूतपूर्व और अभूतपूर्व — ये चोर ऐसी महान गहराई में उतरने लगे कि बुद्ध को लगा कि और थोड़ी देर हो गयी, तो लांछन होगा। इसलिए जाना पड़ा होगा।
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उन्होंने जाकर ये सूत्र इन चोरों से कहे थे ।
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सिञ्च भिक्खु! इमं नावं सित्ता ते लहुमेस्सति ।
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