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एस धम्मो सनंतनो
लेकिन कुछ लोग गलत चीजों को असली धन समझ रहे हैं तो उन्हीं को पकड़ते हैं। जिस दिन उनको पता चल जाएगा कि यह असली धन नहीं है, उसी दिन उनके जीवन में रूपांतरण, क्रांति, नए का आविर्भाव हो जाएगा। उस दिन उन चोरों के जीवन में हुआ। ___ उन्होंने सब, जो ले गए थे बाहर, जल्दी से भीतर पूर्ववत रख दिया। भागे धर्म-सभा की ओर। सुना। पहली बार सुना। कभी धर्म-सभा में गए ही नहीं थे। धर्म-सभा में जाने की फुर्सत कैसे मिलती! जब लोग धर्म-सभा में जाते, तब वे चोरी करते। तो धर्म-सभा में कभी गए नहीं थे। पहली बार ये अमृत-वचन सुने।
खयाल रखना, अगर पंडित होते, शास्त्रों के जानकार होते, तो शायद कुछ पता न चलता। तुमसे मैं फिर कहता हूं : पापी पहुंच जाते हैं और पंडित चूक जाते हैं। क्योंकि पापी सुन सकते हैं। उनके पास बोझ नहीं है ज्ञान का। उनके पास शब्दों की भीड़ नहीं है। उनके पास सिद्धांतों का जाल नहीं है।
पापी इस बात को जानता है कि मैं अज्ञानी हूं, इस कारण सुन सकता है। पंडित सोचता है : मैं ज्ञानी हूं। मैं जानता ही हूं, इसलिए क्या नया होगा यहां! क्या नया मुझे बताया जा सकता है? मैंने वेद पढ़े। मैंने उपनिषद पढ़े। गीता मुझे कंठस्थ है। यहां मुझे क्या नया बताया जा सकता है? इसलिए पंडित चूक जाता है। .
धन्यभागी थे कि वे लोग पंडित नहीं थे और चोर थे। जाकर बैठ गए। अवाक होकर सुना होगा। पहले सुना नहीं था। कुछ पूर्व-ज्ञान नहीं था, जिसके कारण मन खलल डाले। ___ उन्होंने वहां अमृत बरसते देखा। वहां उन्होंने अलौकिक संपदा बंटते देखी। उन्होंने जी भरकर उसे लूटा। चोर थे! शायद इसी को लूटने की सदा कोशिश करते रहे थे। बहुत बार लूटी थी संपत्ति, लेकिन मिली नहीं थी। इसलिए चोरी जारी रही थी। आज पहली दफे संपत्ति के दर्शन हुए।
फिर सभा की समाप्ति पर वे सब उपासिका के पैरों पर गिर पड़े। क्षमा मांगी। धन्यवाद दिया। और चोरों के सरदार ने उपासिका से कहा ः आप हमारी गुरु हैं। आपके वे थोड़े से शब्द–कि जा; चोरों को ले जाने दे जो ले जाना हो। आपकी वह हंसी, और आपका वह निर्मल भाव, और आपकी वह निर्वासना की दशा, और आपका यह कहना कि मेरे धर्म-श्रवण में बाधा न डाल-हमारे जीवन को बदल गयी। आप हमारी गुरु हैं। अब हमें अपने बेटे से प्रव्रज्या दिलाएं। हम सीधे न मांगेंगे संन्यास। हम आपके द्वारा मांगेंगे। आप हमारी गुरु हैं। ___ उपासिका अपने पुत्र से प्रार्थना कर उन्हें दीक्षित करायी। वे चोर अति आनंदित थे। उनके जीवन में इतना बड़ा रूपांतरण हुआ—आनंद की बात थी। जैसे कोई अंधेरे गर्त से एकदम आकाश में उठ जाए। जैसे कोई अंधेरे खाई-खड्डों से एकदम सूर्य से मंडित शिखर पर बैठ जाए। जैसे कोई जमीन पर सरकता-सरकता अचानक
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