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________________ संन्यास की मंगल-वेला लिखा जा सके, ऐसी अभी मनुष्य की चित्तदशा नहीं है। ___ अगर असली इतिहास लिखा जा सके, तो बुद्ध होंगे उस इतिहास में, महावीर होंगे, कबीर होंगे, नानक होंगे, दादू होंगे; मीरा होगी, सहजो होगी। क्राइस्ट, जरथुस्त्र, लाओत्सू और च्यांगत्सू-ऐसे लोग होंगे। रिझाई, नारोपा, तिलोपा-ऐसे लोग होंगे। फ्रांसिस, इकहार्ट, थेरेसा-ऐसे लोग होंगे। मोहम्मद, राबिया, बायजीद, मंसूर-ऐसे लोग होंगे। - लेकिन ऐसे लोगों का तो कुछ पता नहीं चलता। फुट नोट भी इतिहास में उनके लिए नहीं लिखे जाते। उनका नाम भी लोगों को ज्ञात नहीं है! इस पृथ्वी पर अनंत संत हुए हैं, उनका नाम भी लोगों को ज्ञात नहीं है। और वे ही असली इतिहास हैं। वे ही असली नमक हैं पृथ्वी के। उनके कारण ही मनुष्य में थोड़ी गरिमा और गौरव है। __चोर आया; प्रधान था चोरों का। उसने यह बात सुनी; वह भरोसा न कर सका! उसने तो सदा जाना कि धन सोना-चांदी, हीरे-जवाहरात में है। तो यहां कोई और धन बंट रहा है! हम इसका सब लूटे लिए जा रहे हैं और यह कहती है, जा-हंसकर ले जाने दे चोरों को। कूड़ा-कर्कट है। यहां तू विघ्न मत डाल। मेरे ध्यान में खलल खड़ी न कर। मुझे चुका मत। एक शब्द भी चूक जाएगा, तो मैं पछताऊंगी। वह सारी संपत्ति चली जाए, यह एक शब्द सुनायी पड़ जाए, तो बहुत है। चोर ठिठक गया। मेरे देखे, अपराधी सदा ही सीधे-सादे लोग होते हैं। उनमें एक तरह की निर्दोषता होती है। एक तरह का बालपन होता है। वह ठिठक गया। तो उसने कहाः फिर हम भी क्यों न लूटें इसी धन को। तो हम कब तक वही हीरे-जवाहरात लूटते रहें! जब इसको उनकी चिंता नहीं है, तो जरूर कुछ मामला है; कुछ राज है। हम कुछ गलत खोज रहे हैं। वह भागा गया। उसने अपने साथियों को भी कहा कि मैं तो जाता हूं सुनने; तुम आते हो? क्योंकि वहां कुछ बंटता है। मुझे समझ में नहीं आ रहा है अभी कि क्या बंट रहा है। कुछ सूक्ष्म बरस रहा होगा वहां। अभी मेरी समझ नहीं है कि साफ-साफ क्या हो रहा है; लेकिन एक बात पक्की है कि कुछ हो रहा है। क्योंकि हम यह सब लिए जा रहे हैं और उपासिका कहती है : ले जाने दो। लेकिन मेरे ध्यान में बाधा मत डालो। यहां मैं सुनने बैठी हूं। धर्म-श्रवण कर रही हूं। इसमें खलल नहीं चाहिए। तो जरूर उसके भीतर कोई संगीत बज रहा है, जो बाहर से दिखायी नहीं पड़ता। और भीतर कोई रसधार बह रही है, जो बाहर से पकड़ में नहीं आती। हम भी चलें; तुम भी चलो। हम कब तक यह कूड़ा-कर्कट इकट्ठा करते रहेंगे! तो हमें अब तक ठीक धन का पता नहीं था। ___ शायद चोर भी ठीक धन की तलाश में ही गलत धन को इकट्ठा करता रहता है। यही मेरा कहना है। इस दुनिया में सभी लोग असली धन को ही खोजने में लगे हैं,
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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