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________________ संन्यास की मंगल-वेला इतना धन था कि ढोते-ढोते दिन लग जाते, तो ही वे ले जा सकते थे। ___तो एक हजार चोर इकट्ठे उसके घर पर हमला बोल दिए। सब तरफ से दीवालें तोड़कर वे अंदर घुस गए। सिर्फ एक दासी घर में छूटी थी। उसने इतना बड़ा गिरोह देखा, तो भागी। वे चोर सोना-चांदी, हीरे-जवाहरात ढो-ढोकर बाहर ले जाने लगे। दासी ने जाकर उपासिका को कहा। ___दासी घबड़ायी होगी। पसीना-पसीना हो रही होगी। सब लुटा जाता है। लेकिन उपासिका हंसी और बोली : जा; चोरों की जो इच्छा हो, सो ले जावें; तू उपदेश सुनने में विघ्न न डाल। इस देश ने एक ऐसी संपदा भी जानी है, जिसके सामने और सब संपदाएं फीकी हो जाती हैं। इस देश को ऐसे हीरों का पता है, जिनके सामने तुम्हारे हीरे कंकड़-पत्थर हैं। इस देश ने ध्यान का धन जाना। और जिसने ध्यान जान लिया, उसके लिए फिर और कोई धन नहीं है। सिर्फ ध्यान ही धन है। इस देश ने समाधि जानी। और जिसने समाधि जानी, वह सम्राट हुआ; उसे असली साम्राज्य मिला। तुम सम्राट भी हो जाओ संसार में, तो भिखारी ही रहोगे। और तुम भीतर के जगत में भिखारी भी हो जाओ, तो सम्राट हो जाओगे। ऐसा अदभुत नियम है। उस क्षण उपासिका रस-विमुग्ध थी। उसका बेटा लौटा था बुद्ध के पास होकर। बुद्ध की थोड़ी सुवास लाया था। बुद्ध का थोड़ा रंग लाया था; बुद्ध का थोड़ा ढंग लाया था। वह जो कह रहा था, उसमें बुद्ध के वचनों की भनक थी। वह लवलीन होकर सुनती थी। वह पूरी डूबी थी। वह किसी और लोक की तरफ आंख खोले बैठी थी। उसे किसी विराट सत्य के दर्शन हो रहे थे। उसे एक-एक शब्द हृदय में जा रहा था और रूपांतरित कर रहा था। उसके भीतर बड़ी रासायनिक प्रक्रिया हो रही थी। वह देह से आत्मा की तरफ मुड़ रही थी। वह बाहर से भीतर की तरफ मुड़ रही थी। उसने कहा : जा; चोरों की जो इच्छा हो, सो ले जावें। तू उपदेश सुनने में विघ्न न डाल। ऐसा तो कोई तभी कह सकता है, जब विराट मिलने लगे। ' और मैं तुमसे कहता हूं: क्षुद्र को छोड़ना मत; विराट को पहले पाने में लगो, क्षुद्र अपने से छूट जाएगा। तुमसे मैं नहीं कहता कि तुम घर-द्वार छोड़ो। मैं तुमसे मंदिर तलाशने को कहता हूं। मैं तुमसे नहीं कहता कि तुम धन-दौलत छोड़ो। मैं तुमसे ध्यान खोजने को कहता हूं। जिसको ध्यान मिल जाएगा, धन-दौलत छूट ही गयी। छूटी न छूटी-अर्थहीन है बात। उसका कोई मूल्य ही न रहा। ____ आमतौर से तुमसे उलटी बात कही जाती है। तुमसे कहा गया है कि तुम पहले संसार छोड़ो, तब तुम परमात्मा को पा सकोगे। मैं तुमसे कहना चाहता हूं : तुम संसार छोड़ोगे; तुम और दुखी हो जाओगे, जितने तुम दुखी अभी हो। परमात्मा नहीं मिलेगा। लेकिन अगर तुम परमात्मा को पा लो, तो संसार छूट जाएगा। अंधेरे से मत लड़ो, दीए को जलाओ। अंधेरे से लड़ोगे, दीया नहीं जलेगा। अंधेरे 27
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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