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________________ एस धम्मो सनंतनो जिसमें ध्यान और प्रज्ञा हैं, वही निर्वाण के समीप है।' पहले घटना को समझें। भगवान के अग्रणी शिष्यों में से एक महाकात्यायन के शिष्य कुटिकण्ण सोण कुररघर से जेतवन जा भगवान का दर्शन करके जब वापस आए, तब उनकी मां ने एक दिन उनके उपदेश सुनने के लिए जिज्ञासा की और नगर में भेरी बजवाकर सबके साथ उनके पास उपदेश सुनने गयी। ऐसे थे वे दिन! बुद्ध की तो महिमा थी ही। बुद्ध के दर्शन करके भी कोई अगर लौटता था, तो वह भी महिमावान हो जाता था। ऐसे ही जैसे कोई फूलों से भरे बगीचे से गुजरे, तो उसके वस्त्रों में फूलों की गंध आ जाती है। ऐसे ही कोई बुद्ध के पास से आए, तो उसमें थोड़ी सी तो गंध बुद्ध की समा ही जाती। तो यह कुटिकण्ण सोण अपने गांव से बुद्ध के दर्शन करने को गए। वहां से जब लौटे वापस, तो उनकी मां ने कहाः तुम धन्यभागी हो। तुम बुद्ध के शिष्य महाकात्यायन के शिष्य हो। तुम महाधन्यभागी हो; तुम बुद्ध के दर्शन करके लौटे। हम इतने धन्यभागी नहीं। चलो, हमें फूल न मिले, तो फूल की पाखुड़ी मिले। तुम जो लेकर आए हो, हमसे कहो। सूरज के दर्शन शायद हमें न हों, तुम जो थोड़ी सी ज्योति लाए हो, उस ज्योति के दर्शन हमें कराओ। तो उसने प्रार्थना की कि तुमने जो सुना हो वहां, वह दोहराओ; हमसे कहो। __ और दूसरी बातः वह अकेली सुनने नहीं गयी। उसने सारे गांव में भेरी फिरवा दी और कहा कि कुटिकण्ण बुद्ध के पास होकर आए हैं, थोड़ी सी बुद्धत्व की संपदा लेकर आए हैं। वे बांटेंगे; सब आएं। ऐसे थे वे दिन! क्योंकि जब परम धन लुटता हो, बंटता हो, तो अकेले-अकेले नहीं, भेरी बजाकर, सबको निमंत्रित करके। इस जगत की जो संपदा है, उसमें दूसरों को निमंत्रित नहीं किया जा सकता। क्योंकि वे बांट लेंगे, तो तुम्हारे हाथ कम पड़ेगी। उस जगत की जो संपदा है, अगर तुमने अकेले ही उसको अपने पास रखना चाहा, तो मर जाएगी; मुर्दा हो जाएगी; सड़ जाएगी। तुम्हें मिलेगी ही नहीं। उस जगत की संपदा उसे ही मिलती है, जो मिलने पर बांटता है। जो मिलने पर बांटता चला जाता है। जो जितना बांटता है, उतनी संपदा बढ़ती है। __ इस जगत की संपदा बांटने से घटती है। उस जगत की संपदा बांटने से बढ़ती है। इस सूत्र को खयाल रखना। तो भेरी बजवा दी। सारे गांव को लेकर उपदेश सुनने गयी। स्वभावतः, सारा गांव उपदेश सुनने गया। चोरों की बन आयी। गांव में कोई था ही नहीं। सारा गांव उपदेश सुनने गांव के बाहर इकट्ठा हुआ था। चोरों ने सोचा: यह अवसर चूक जाने जैसा नहीं है। वे उपासिका के घर में पहुंच गए बड़ा गिरोह लेकर। ठीक संख्या बौद्ध-ग्रंथों में है—एक हजार चालीस। क्योंकि उपासिका महाधनी थी। उसके पास 26
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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