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एस धम्मो सनंतनो
छठवां प्रश्नः
संसार ने बड़ी क्रूरता से मेरी सारी आशाओं पर पानी फेर दिया है। मैं संसार को क्षमा करूं भी तो कैसे करूं!
संसार तुम्हारी आशाओं पर न तो पानी फेर रहा है, न सोना फेर रहा है। संसार
को तुम्हारी आशाओं का पता ही नहीं है। तुम्हारी आशाओं का बस, तुम्हीं को पता है। __ और जब तुम्हें लगता है कि संसार ने तुम्हारी आशा पर पानी फेरा, तो इतना ही समझना कि तुमने प्रकृति के प्रतिकूल कुछ करने की कोशिश की होगी। संसार ने कुछ नहीं किया है, तुम ही उलटे गए होओगे। ___अब तुम वृक्ष पर से गिर पड़ो और कहो कि गुरुत्वाकर्षण ने मेरी टांग तोड़ दी! गुरुत्वाकर्षण को इससे क्या लेना-देना है ! गुरुत्वाकर्षण को तुम्हारी टांग का पता भी नहीं है। तुम्हारी टांग इतनी महत्वपूर्ण भी नहीं है कि गुरुत्वाकर्षण इसे तोड़ने के लिए कोई विशेष आयोजन करे। आप ही चूककर गिर गए हैं!
तुम्हारी आशाएं व्यक्तिगत हैं। और तुम्हारी व्यक्तिगत आशाओं के कारण ही उन पर पानी फिर जाता है। समष्टि की भाषा में सोचो। समष्टि के साथ सोचो, विपरीत नहीं। धारा में बहो; धारा से लड़ो मत। फिर तुम्हारी किसी आशा पर कभी पानी न फिरेगा।
और अगर तुम ठीक से समझे, तो मतलब क्या हुआ? मतलब यह हुआ कि जब तुम समष्टि के साथ बहोगे, तो तुम अलग से आशा ही कैसे करोगे! जो समष्टि की नियति है, वही तुम्हारी नियति है। अलग से आशा करने की जरूरत क्या है? समझदार आदमी अलग से झंझटें नहीं लेता।
इतना विराट जिस सहारे चल रहा है, मैं, छोटा सा, उसके सहारे चल लूंगा। चांद-तारे नहीं चूकते! इतना विराट विश्व इतनी सुविधा और इतनी संगीतबद्धता से चल रहा है। एक मैं ही क्यों चिंता करूं! जो इस सबको चलाता है, मुझे भी चला लेगा। और जो मुझे न चला पाएगा, वह इतने विराट को कहां चला पाएगा!
इस भावदशा का नाम ही धार्मिकता है कि मैं अलग से निजी आशाएं न करूं; मैं निजी कामनाएं न करूं; मैं इस विराट के साथ तल्लीन होना सीखू। इस तल्लीनता में प्रार्थना उमगती है।
पूछते हो: 'संसार ने बड़ी क्रूरतापूर्वक...।'
किसको उत्सुकता है! बड़ी क्रूरतापूर्वक तुम्हारी टांग तोड़ दी गुरुत्वाकर्षण ने! तुम्हीं गिरे होओगे; तुम्हीं ऐसे ढंग से गिरे होओगे!
तुमने देखा, कभी-कभी ऐसा हो जाता है। एक बैलगाड़ी में एक शराबी चलता
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