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एस धम्मो सनंतनो
या वहां कल्पवृक्ष हैं, जिनके नीचे बैठो और जो चाहो, तत्क्षण पूरा हो जाए। तत्क्षण–चाहा कि पूरा हो जाए।
स्वर्ग के चाहने वाले, तुम सोचते हो, आध्यात्मिक हैं? या कि तुम सोचते हो, मोक्ष को चाहने वाले आध्यात्मिक हैं? मोक्ष में भी क्या चाह रहे हो? यही कि शांति मिले; आनंद मिले; दुख से छुटकारा हो; पीड़ा न रहे।
मगर यही तो सांसारिक आदमी भी चाह रहा है। वह भी इसीलिए तो धन कमा रहा है कि दुख न रहे। इसीलिए तो चाहता है बड़ा मकान बना ले कि थोड़ी सुविधा हो। तुम्हारी और उसकी चाह में कोई मौलिक भेद नहीं है। भेद होगा अगर तो परिमाण का होगा, गुण का नहीं है।
तुम भला उससे कह सकते हो कि तेरी चाह क्षणभंगुर है, हमारी चाह शाश्वत . की है। लेकिन इसका तो मतलब यही, हुआ कि तुम उससे भी बड़े संसारी हो। उसकी चाह क्षणभंगुर की है; उसकी चाह छोटी है। तुम्हारी चाह बड़ी भयंकर है; सनातन की है; शाश्वत की है! तुम क्षणभंगुर से राजी नहीं होते। तुम्हारा लोभ बहुत बड़ा है। तुम भयंकर संसारी हो!
फिर मैं किसको आध्यात्मिक कहता हूं जिसकी कोई चाह नहीं; जो बिना चाह जीता है। जो कहता है: यहीं जीएंगे, अभी जीएंगे। जिसके लिए वर्तमान कल्पवृक्ष है। जिसके लिए, जैसा है, वैसा होना स्वर्ग है। जहां है, वहीं मोक्ष। ऐसा व्यक्ति आध्यात्मिक है। जिसके पास अन्यथा की कोई मांग नहीं है। कल जो आएगा, आएगा। अभी जो है, उसे भोगता है। अभी जो है, उसे बड़े आनंद से भोगता है, बड़े अनुग्रह से भोगता है।
पांचवां प्रश्न:
भगवान, एक संत से आपके बारे में बातचीत होती थी। मैंने कहाः मेरे भगवान श्री स्वयं सभी प्रश्नों के उत्तर हैं। उन्होंने कहाः नहीं; उत्तर तो बहत हैं। मगर रजनीश तो सभी उत्तरों के लिए एक प्रश्न बन गया है! भगवान, कृपया बताएं कि आप प्रश्न हैं या उत्तर?
जो सभी उत्तरों के लिए एक प्रश्न बन गया हो, वही सभी प्रश्नों का उत्तर हो सकता
है। संत ने ठीक ही कहा। ___ अब उनसे मिलो, तो मेरी तरफ से उनसे यह कह देना—कि जो सभी उत्तरों के लिए प्रश्न बन गया हो, वही सभी प्रश्नों का उत्तर हो सकता है।
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