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________________ एस धम्मो सनंतनो ताला खोज रहा था! ताला था नहीं। मुश्किल में पड़ गया। तीन घंटे लग गए। अगर पहले ही दरवाजा खोल दिया होता; इतना सोच लिया होता । सोचा नहीं होगा। क्योंकि कैसे सोचता ! जिंदगीभर ताले ही खोले थे। और जब लोग उसे बंद करते थे, तो तालों में ही बंद करते थे । ताले खुलवाने के लिए ही तो बंद करते थे। मगर ये इटैलियन बाजी मार ले गए। हूदनी को बुरा हराया। खूब गहरा मजाक किया । स्वभावतः, तुम भी हूदनी की जगह होते, तो ताला ही खोजते रहते। और जिसको तीन मिनट में बाहर निकलना हो, उसकी बेचैनी ! स्वभावतः, पसीना-पसीना हो गया होगा। तीन मिनट की तो बात- - घंटा बीत गया ! बार-बार घड़ी देखता होगा। घंटा बीत गया। प्रतिष्ठा गयी ! जीवनभर की कमायी गयी ! लोग क्या कहेंगे ? कि हूदनी गए ! हार गए ! पुलिस वालों से हार गए ! आज लग गया ताला तुम पर ! जिंदगीभर की प्रतिष्ठा थी; मिट्टी हुई जा रही है ! जैसे-जैसे समय बीता होगा, वैसे-वैसे बेचैनी बढ़ी होगी; वैसे-वैसे घबड़ाहट बढ़ी होगी। रक्तचाप बढ़ा होगा। हृदय की धड़कन बढ़ी होगी। पसीना-पसीना हुआ जा रहा होगा । और जितना पसीना हुआ होगा, जितना रक्तचाप बढ़ा होगा, जितनी घबड़ाहट बढ़ी होगी, उतनी ही तेजी से ताला खोजता होगा ! जितना ताला खोजता होगा, उतनी ही बुद्धि खो गयी; उतना ही बोध खो गया । यह बात तो उठे भी कैसे कि शायद दरवाजा खुला हो ! दरवाजा खुला है। लेकिन चाहत के कारण नहीं खुल पा रहा है। चाह छोड़ो। और जब मैं कहता हूं, चाह छोड़ो, तो बेशर्त कह रहा हूं। यह नहीं कह रहा हूं कि संसार की चाह छोड़ो। फिर दोहरा दूं : चाह संसार है। संसार की कोई चाह नहीं होती और परमात्मा की कोई चाह नहीं होती । जहां चाह है, वहां संसार है। अगर तुम परमात्मा चाहते हो, तो तुम अभी भी सांसारिक हो । इसलिए तो मैं कहता हूं : तुम्हारे ऋषि-मुनि जो मंदिरों में और गुफाओं में बैठे हैं— सब संसारी हैं; तुम जैसे संसारी हैं; जरा भेद नहीं है । स्वर्ग चाह रहे हैं ! स्वर्ग में क्या चाह रहे हैं? वही अप्सराएं, जिनको तुम यहां चाह रहे हो। तुम फिल्म अभिनेत्रियों में देख रहे हो; तुम जरा आधुनिक हो, वे जरा प्राचीन हैं। वे जरा उर्वशी इत्यादि की सोच रहे हैं! वे पुरानी फिल्म अभिनेत्रियां! वे सोच रहे हैं : वहां मिलेगा । तुम सोचते हो : यहीं चले जाएं बाजार में और दो कुल्हड़ पी लें। और वे सोचते हैं कि वहां पीएंगे बहिश्त में, जहां झरने बह रहे हैं शराब के। यहां क्या पीना ! फिर मुफ्त मिलती है वहां । कोई पाबंदी भी नहीं है। असली शराब मिलती है वहां । ऐसा कोई देशी ठर्रा नहीं। वहां कोई स्वदेशी की झंझट नहीं है। विदेशी शराब के झरने बह रहे हैं ! नहाओ, धोओ, डुबकी लगाओ। पीओ, पिलाओ। 323
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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