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एस धम्मो सनंतनो
बनाना। चाह से जो मुक्त हो जाता है, उसे सत्य मिलता है।
यह तुम्हें जरा कठिन लगेगा। लेकिन धैर्यपूर्वक समझोगे, तो सीधी-सीधी बात है। चाह के कारण तनाव पैदा होता है। तनाव भरे चित्त में परमात्मा की छबि नहीं बनती। चाह के कारण तरंगें उठ आती हैं। तरंगों के कारण सब कंपन पैदा हो जाता है। कंपते हुए मन में परमात्मा की छबि नहीं बनती।
ठीक से समझो, तो कंपता हुआ मन ही संसार है। पूछा है तुमने कि 'मनोमंथन करने पर पता चला कि सांसारिक वासनाएं तो नहीं
लेकिन वासना संसार है। सांसारिक वासनाएं और पारलौकिक वासनाएं, ऐसी दो वासनाएं थोड़े ही होती हैं।
तुम्हें पंडित-पुरोहितों ने बड़ी गलत बातें समझायी हैं। उन्होंने समझाया है कि संसार की वासना छोड़ो और परलोक की वासना करो। लेकिन ज्ञानियों ने कुछ और कहा है। बुद्धों ने कुछ और कहा है। उन्होंने कहा है : वासना छोड़ो, क्योंकि वासना संसार है। और जहां वासना नहीं है, वहां परलोक है। जहां वासना है, वहां यही लोक रहा आएगा। धोखे में मत पड़ना। मन बहुत चालबाज है।
मन कहता है कि यह तो अच्छी वासना है। अच्छी वासना होती ही नहीं। वासना मात्र बुरी होती है। मन कहेगा : यह तो धार्मिक वासना है! यह तो आध्यात्मिक वासना है। इसको तो खूब करना चाहिए। हां, धन थोड़े ही चाहते हैं हम; हम तो ध्यान चाहते हैं। ___ मगर चाहने में ही तो उपद्रव है। चाहते, तो मतलब तन गए। चाहते, तो मतलब अशांत हो गए। चाहते, तो मतलबः यहां न रहे, इस क्षण में न रहे। भविष्य में चले गए। धन भी कल मिलेगा, और ध्यान भी कल मिलेगा। तो कल में चले गए। आज चूक गया। पद भी कल और परलोक भी कल।
और जो है, वह अभी है और यहीं है, इसी क्षण है। समझो। जागो।
अगर इसी क्षण तुम्हारे भीतर कोई वासना नहीं है; मुझे समझने की भी वासना नहीं है; शांत बैठे हो; कोई वासना नहीं है। चित्त निस्तरंग है। क्या पाने को बचा? उस निस्तरंग चित्त में क्या कमी है?
वही निस्तरंग चित्त तो आप्तकाम है। वही निस्तरंग चित्त तो ब्राह्मण है। उसी को मैं ब्राह्मण कहता हूं; निस्तरंग चित्त; अकंपित।
ब्रह्म की चाह भी रह गयी, तो ब्राह्मण नहीं। ब्रह्म हो गए, तो ब्राह्मण। और ब्रह्म होने के लिए देर क्या है? ब्रह्म तुम हो। मगर तुम्हारी चाहत ने तुम्हें चुकाया है। तुम जो खोज रहे हो, वह तुम्हारे भीतर मौजूद है। मगर खोज की वजह से तुम इतने उद्विग्न हो गए हो...।
हूदनी की कहानी फिर याद करो। दरवाजा खुला था; अटका था। मगर वह
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