SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 334
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो के राज्य में प्रवेश पा सकेंगे। ___ क्यों बच्चों की भांति भोले-भाले लोग पा सकेंगे? क्योंकि बच्चे ही रहस्य को जीना जानते हैं। तुमने छोटे बच्चे देखे! चारों तरफ उन्हें विमुग्ध करने वाला जगत दिखायी पड़ता है। हर चीज उन्हें आकर्षित करती है। एक तितली उड़ी जाती है, भागने लगते हैं। तुम कहते होः कहां भाग रहा है पागल! क्योंकि तुम्हें तितली में कुछ नहीं दिखता। तुम अंधे हो। तुम अंधे हो गए हो। तुम्हारी आंख पर धूल जम गयी है। समय ने तुम्हारी आंख को खराब कर दिया है। स्कूल ने, शिक्षकों ने, माता-पिताओं ने, संस्कारों ने तुम्हारी आंख को धूमिल कर दिया है। तुम्हारे आश्चर्य की हत्या कर दी है। और जिस आदमी के भीतर आश्चर्य मर गया, उस आदमी के भीतर आत्मा मर गयी। __तुम अब चकित होने की क्षमता खो दिए हो। चकित होने जैसी बात है। तितली का होना असंभव जैसा होना है। होना नहीं चाहिए। इतनी सुंदर तितली! इतनी रंग-बिरंगी तितली! यूं उड़ी जाती है। बच्चा चकित है, विमुग्ध है। भागा। तुम उसका हाथ खींचते हो। कहते होः कहां जाते हो? बच्चा घास में खिले एक फूल को देखकर विमुग्ध हो जाता है। रसलीन हो जाता है। कंकड़-पत्थर बीनने लगता है समुद्र के तट पर। रंग-बिरंगे कंकड़-पत्थर! तुम कहते हो : यह तू क्या कर रहा है? फिजूल ये चीजें कहां ले जा रहा है? तुमसे बचाकर भी बच्चा अपने खीसों में कंकड़-पत्थर भर लाता है। रात उसकी मां को उसके बिस्तर में से कंकड़-पत्थर निकालकर अलग करने पड़ते हैं। ___ इन कंकड़-पत्थरों में बच्चे को अभी उतना दिख रहा है, जितना बाद में तुम्हें हीरों में भी नहीं दिखेगा। इस बच्चे के पास अभी गहरी आंख है। ___ यहां हर चीज रहस्यमय है। छोटे से कंकड़ में भी तो परमात्मा विराजमान है। हर कंकड़ हीरा है। होना ही चाहिए। क्योंकि हर कंकड़ पर उसी के हस्ताक्षर हैं। होना ही चाहिए। हर पत्ती पर वेद है। हर फूल में उपनिषद है। हर पक्षी की आवाज में कुरान की आयत है। होनी ही चाहिए। क्योंकि वही तो बोलता है। क्योंकि वही तो खिलता है। क्योंकि वही तो उड़ता है। वही है। बच्चा रोमांचित हो जाता है छोटी-छोटी बात से। एक तोता उड़ जाता है और बच्चा रोमांचित हो जाता है। जिस दिन तुम बच्चे जैसे होओगे...। फिर से तुम्हें बच्चा होना पड़ेगा। फिर से तुम्हें धूल झाड़नी होगी। समय ने, समाज ने, संस्कारों ने तुम्हारे मन में जो विकृतियां डाल दी हैं—विकृतियां यानी ज्ञान-वह जो ज्ञान डाल दिया है, वह जो पांडित्य डाल दिया है, तुम्हें भ्रम दे दिया है कि मैं जानता हूं; उस भ्रम को छोड़ना होगा। न तो कोई औजार है, न कोई तरकीब है। क्योंकि यहां कोई ताला ही नहीं है, 319
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy