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________________ एस धम्मो सनंतनो तीसरा प्रश्नः औजार कोई तरकीब कोई न जाने कहां क्या अटका है, न जाने कहां क्या जाम हुआ यह रात कि बंद होती ही नहीं, यह दिन कि उफ खुलता ही नहीं औजार कोई तरकीब कोई! एक एक बहुत बड़ा जादूगर हुआ-हूदनी। उसकी सबसे बड़ी कला यह थी कि कैसी ही जंजीरों में उसे कस दिया जाए, वह क्षणों में खोलकर बाहर आ जाता था। जंजीरों में कसकर, पेटियों में बंद करके, पेटियों पर ताले डालकर उसे समुद्र में फेंका गया। वहां से भी वह मिनटों के भीतर बाहर आ गया। दुनिया के सभी कारागृहों में उस पर प्रयोग किए गए; सभी तरह के पुलिस ने अपने इंतजाम किए-इंग्लैंड में, अमेरिका में, फ्रांस में, जर्मनी में। उसको कारागृह की कोठरी में डाल देते। तालों पर ताले जड़ देते। हाथों में जंजीरें; पैरों में जंजीरें और मिनटें भी नहीं बीतती...। तीन मिनट से ज्यादा उसको कभी नहीं लगे थे जीवन में किसी भी स्थिति से बाहर आ जाने में। बड़ी चौंकाने वाली उसकी कला थी। लेकिन इटली में वह हार गया। इटली में जाकर बड़ी बुरी तरह हारा। घंटेभर तक न निकल सका। तीन घंटे लगे। जो भीड़ इकट्ठी हो गयी थी हजारों लोगों की, वे तो घबड़ा गए कि मर गया हूदनी या क्या हुआ! यह तो किसी को भरोसा ही नहीं था। तीन मिनट तो आखिरी सीमा थी। सेकेंडों में निकल आता था। यह हुआ क्या? और जब तीन घंटे बाद हूदनी निकला, तो उसकी हालत बड़ी खस्ता थी। पसीना-पसीना था। माथे की नसें चिंता से फूल गयी थीं। आंखें लाल हो गयी थीं। बाहर आया, तो हांफ रहा था। पूछा गया कि हुआ क्या! इतनी देर कैसे लगी? उसने कहा कि मेरे साथ बड़ा धोखा किया गया। दरवाजे पर ताला नहीं था। और वह बेचारा कोशिश करता रहा खोलने की कि कहां से खोले। ताला हो तो खोले! एक मजाक काम कर गया। ताला होता तो खोल ही लेता वह। ताला खोलने में तो उसके पास कला थी। ऐसा तो कोई ताला नहीं था, जो वह नहीं खोल लेता। मगर ताला था नहीं। दरवाजा सिर्फ अटका था। सांकल भी नहीं चढ़ी थी। सांकल भी चढ़ी होती, तो खोल लेता। न सांकल थी, न ताला था। भीतर कुछ था ही नहीं। वह बड़ा घबड़ाया। उसने सब तरफ खोजा होगा। कोई उपाय न दिखे। पहली 317
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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