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________________ एस धम्मो सनंतनो तुम सम्मान में भी बेहोशी खोजते हो। तुम बेहोशी ही खोजते हो। यहां तो कम से कम बेहोशी खोजने न आओ। यहां होश खोजो। यहां जागो। निश्चित ही यह जागना भी एक ऐसी अदभुत कीमिया है कि इससे तुम जागोगे भी और मस्त भी हो जाओगे। इसलिए मैं इसको शराब भी कहता हूं। तुम जागोगे भी और डोलोगे भी। ____ मगर डोलना अगर बेहोशी में हो, तो कुछ मजा न रहा। वह तो नींद का डोलना है। जागकर डोलो। होश से भरे नाचो। होश भी हो और नाच भी हो। होश भी हो और रसधार भी बहे। भीतर होश का दीया जले और बाहर मस्ती हो। ___ मैं चाहता हूं : तुम ऐसे संन्यासी हो जाओ कि जिसके भीतर बुद्ध जैसा दीया जलता हो और जिसके बाहर मीरा जैसी मस्ती हो। तुम ऐसा जोड़ बनो। इस जोड़ पर कोशिश नहीं की गयी है। यह जोड़ अब तक संभव नहीं हुआ है। इसलिए अतीत में संन्यास अधूरा-अधूरा रह गया है; आधा-आधा रह गया है। पूरा संन्यासी होश से भरा होगा और मदमस्त भी होगा। दीया भी जला होगा ध्यान का और प्रेम की धारा भी बहती होगी। पूर्ण संन्यासी बनो। एक अपूर्व अवसर तुम्हें मिला है, इसे चूकना मत। चूकने की संभावना सदा ज्यादा है। अगर न चूके तो तुम कुछ ऐसा जान लोगे, तुम कुछ ऐसे हो जाओगे, जैसा कि इसके पहले संभव नहीं था। ___ एकांगी ढंग के संन्यासी हुए हैं। एकांगी ढंग का संन्यास भी सुंदर है। संसार से तो बहुत सुंदर है। लेकिन बहुआयामी संन्यास के सामने फीका है। जैसे हीरे पर देखा न, बहुत पहलू होते हैं। जितने पहलू होते हैं, उतनी हीरे की चमक बढ़ती जाती है। ऐसे ही जितने तुम्हारे संन्यास में पहलू होंगे, उतनी चमक बढ़ती जाएगी, उतनी गरिमा बढ़ती जाएगी। उतनी ही तुमसे ज्यादा किरणें प्रगट होंगी। __ और ये दो पहलू तो होने ही चाहिए कि तुम्हारे भीतर होश का दीया हो, और तुम्हारे भीतर होश के दीए के साथ-साथ मस्ती की लहर हो। होश का दीया ऐसा न हो कि तुम्हें सुखा जाए, रेगिस्तान बना जाए। तुममें फूल भी खिलें। और तुममें फूल ही खिलें, इतना ही नहीं है। क्योंकि अगर फूल ही खिलें और भीतर बेहोशी रहे, तो मजा न रहा। भीतर दीए की ज्योति भी फूलों पर पड़ती हो। फूल अंधेरे में खिलें, तो मजा नहीं है। और दीया रेगिस्तान में जले, तो मजा नहीं है। बगिया में जले दीया। फूल भी खिलें और दीए में दिखायी भी पड़ें। मस्ती भी हो और होश में मस्ती दिखायी भी पड़ती रहे। मस्ती बेहोश न हो। और होश गैर-मस्त न हो। __इस नए संन्यास को ही जन्म दे रहा हूं। तुम एक महान प्रयोग में सहभागी हो । रहे हो। तुम्हें शायद पता हो अपने सौभाग्य का या न पता हो। 316
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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