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एस धम्मो सनंतनो
अभी भी अचेतन घना है।
इसलिए स्त्री अगर तुमसे कहे कि आज मत जाओ; इस हवाई जहाज से यात्रा मत करो; तो सुन लेना। स्त्री कहे : आज...। हालांकि वह कोई जवाब नहीं दे सकेगी; समझा नहीं सकेगी। रोएगी। कहेगी कि आज मत जाओ इस ट्रेन से। और तुम कहोगेः क्या कारण है? क्यों न जाऊं? वह कहेगी : कारण मुझे भी कुछ पता नहीं है। या कुछ बनाया हुआ कारण बताएगी कि मैं ज्योतिषी के पास गयी थी; वह मना करता है कि आज का दिन खराब है; कि मुहूर्त ठीक नहीं है; कि कल चले जाना; कि आज मुझे काम है; कि बच्चा बीमार है। कुछ कारण खोजकर बताएगी। लेकिन अगर तुम ठीक से पूछो, सहानुभूति से पूछो, तो वह कहेगी: बस, मेरे भीतर ऐसा होता है कि आज न जाओ। मुझे भी कुछ पता नहीं है कि ऐसा क्यों होता है। __ स्त्री अभी भी हृदय से ज्यादा जीती है, बजाय तर्क के। इसलिए यह मजेदार घटना घटी।
इसके पहले कि ब्राह्मण—जिसके लिए बुद्ध आए थे—उसके निर्णय को गति मिले, उसके पहले ब्राह्मणी का अचेतन जाग गया। उसके पहले ब्राह्मणी खड़ी हो गयी बचाने को! खतरे के पहले बचाने को खड़ी हो गयी। खतरा द्वार पर खड़ा है। बुद्ध का आगमन खतरनाक है।
हालांकि ब्राह्मणी को भी पता नहीं है; उसने सोचा कि बस, भोजन दुबारा न बनाना पड़े। यह गौतम कहां आकर खड़ा हो गया!
फिर ब्राह्मणी हंसी। उस हंसी में भी...ऊपर से तो कथा इतना ही कहती है कि वह इसलिए हंसी कि हद्द हो गयी! एक मैं एक बार भोजन बनाने की झंझट से बचने के लिए पति को छिपाए खड़ी हूं, रोके खड़ी हूं बुद्ध को। और एक यह गौतम! इसकी भी जिद्द हद्द हो गयी! बढ़ता नहीं। दूसरे दरवाजे चला जाए; इतना बड़ा गांव पड़ा है! अब आज यहीं कोई...जिद्द बांधकर खड़ा है।
ब्राह्मणी सोचती है : इसलिए मैं हंसी कि यह गौतम भी जिद्दी है। लेकिन शायद यह हंसी भी उसके अचेतन से आयी है। शायद उसे कहीं भीतर यह भी साफ हुआ कि भोजन फिर से बनाना पड़े, इतनी सी बात के लिए मैं रोककर खड़ी नहीं होने वाली थी। कुछ और है। और जो और की थोड़ी सी झलक उसे मिली होगी कि कहीं यह श्रमण मेरे पति को न ले जाए; तो हंसी होगी। यह भी कोई बात सोचने की हुई! यह क्यों ले जाएगा? मेरे पति ने कभी संन्यस्त नहीं होना चाहा; कभी भिक्षु नहीं होना चाहा। मेरे पति, यद्यपि इस गौतम को कभी-कभी दान देते हैं, लेकिन अब भी ब्राह्मण हैं। अब भी पूजा करते हैं; हवन करते हैं; वेद पढ़ते हैं; शास्त्र में लगे रहते हैं। भ्रष्ट होने की कोई आशा नहीं है। मैं भी कैसी चिंता में पड़ गयी! इसलिए भी हंसी होगी।
उस घड़ी भगवान ने यह गाथा कही; और यह गाथा ब्राह्मण का संन्यास बन
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