________________
संन्यास की मंगल-वेला
गयी। फिर क्षणभर नहीं रुका। फिर बुद्ध के चरणों में समर्पित हो गया। फिर बुद्ध के पीछे चल पड़ा।
और ब्राह्मणी भी, जो क्षणभर पहले बुद्ध से बचाने को खड़ी हुई थी, वह भी दीक्षित हई; वह भी संन्यस्त हुई। उसका प्रेम अपने पति से, सिर्फ शरीर के तल का ही नहीं रहा होगा। शरीर के ही तल का होता, तो नाराज होती। गहरा रहा होगा; थोड़ा ज्यादा गहरा रहा होगा। और अगर आज पति संन्यस्त होता है, और दीक्षा के मार्ग पर जाता है, तो ठीक है, वह भी जाएगी। निस्संकोच, निर्भय-जो पति कर रहा है, वह वह भी करेगी। ___ यह चौंकाने वाली बात है कि जो अभी क्षणभर पहले एक बार और भोजन बनाने से परेशान हो रही थी, वह आज पति के साथ भिक्षुणी होने को तैयार हो गयी है! ___ मनुष्य के भीतर ऐसे द्वंद्व हैं। जो स्त्री तुम्हारे लिए जिंदगी को दूभर बना दे, वही तुम्हारे ऊपर जान भी दे सकती है। जो स्त्री तुम्हारे ऊपर अपने जीवन को न्योछावर कर दे, क्रोध से भर जाए तो तुम्हें जहर भी पिला सकती है। ''प्रेम के रास्ते बड़े उलझे हुए हैं। प्रेम के रास्ते बड़े जटिल हैं। प्रेम का गणित सीधा-सीधा नहीं है। प्रेम के रास्ते सीधे-साफ नहीं हैं, पगडंडियों की तरह हैं; बड़े उलटे-सीधे जाते हैं। __एक क्षण पहले भोजन पकाने में झिझकी थी; और एक क्षण बाद सब छोड़कर जाने में झिझक न हुई! उस ब्राह्मणी का प्रेम बुद्ध से तो नहीं था, लेकिन अपने पति से था। और इसलिए मैं तुमसे कहता हूं कि प्रेम किसी से भी हो, तो परमात्मा तक जाने का मार्ग बन सकता है। ___ अपने पति से प्रेम था; बुद्ध से कुछ लेना-देना नहीं था। उसने एक बार भी भगवान की तरह बुद्ध को नहीं सोचा। वह कहती है, यह गौतम! यह श्रमण गौतम कहां खड़ा हो गया है आकर! लेकिन पति के प्रति उसका मन वही होगा, जो इस देश में सदा से सोचा गया, विचारा गया, जिसके काव्य लिखे गए हैं, जिसके गीत गाए गए हैं। उसने अपने पति को परमात्मा माना होगा। और जब उसका परमात्मा जाता है, तो उसके लिए भी जाना है। जहां उसका परमात्मा जाता है, वहां उसे जाना है।
जैसे स्त्रियां इस देश में कभी पति की चिता पर चढ़कर सती होती रहीं, ऐसे इस देश में स्त्रियां कभी पति के साथ संन्यस्त भी हो गयी हैं। जिसके साथ राग जाना, उसके साथ विराग भी जानेंगे। और जिसके साथ सुख जाना, उसके साथ तपश्चर्या भी जानेंगे। साथ एक बार हो गया, तो अब सुख हो कि दुख, घर-द्वार हो कि रास्ता-साथ हो गया, तो साथ हो गया। इस देश ने साथ के बड़े अंतरंग प्रयोग किए हैं।
बुद्ध ने कहाः 'जिसकी नाम-रूप-पंच-स्कंध में जरा भी ममता नहीं है और जो उनके नहीं होने पर शोक नहीं करता, वह भिक्षु कहा जाता है।'