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संन्यास की मंगल-वेला
दिया जा सकता। .. इस मधुर क्षण में उसके भीतर संन्यास की आकांक्षा का उदय हुआ था।
ब्राह्मण को भी दिखायी पड़ा कि कुछ कंपता हुआ उठ रहा है, झंझावात कुछ भीतर आ रहा है। कुछ भीतर उमग रहा है, जो पहले कभी नहीं उमगा था। कोई बीज फूटा है, अंकुर बना है। और अंकुर तेजी से बढ़ रहा है। अचानक उसे दिखायी पड़ा कि मैं भिक्षु होना चाहता हूं। मैं संन्यस्त होना चाहता हूं। . वह जो निश्चय भगवान को दिखायी पड़ा था, वह ब्राह्मण को भी दिखायी पड़ गया। भगवान की सन्निधि का परिणाम! ___ इसलिए सदा से साधु-संगत का मूल्य है। साधु-संगत में कुछ बाहर से नहीं होगा। होना तो भीतर ही है। जागनी तो तुम्हारी ही ज्योति है। लेकिन जहां बहुत ज्योतियां जगी हों, और जहां ज्योति के जगने की बात होती हो, चर्चा होती हो, महिमा होती हो, जहां जगी हुई ज्योतियां नाचती हों-वहां ज्यादा देर तक तुम बुझे न रह सकोगे। उस रौ में बह जाओगे। उस नाचती हुई ऊर्जा में वह क्षण आ जाएगा, जब तुम भी नाचने लगोगे। तुम्हारे भीतर भी भभककर उठ आएगी तुम्हारी सोयी हुई ज्योति।
शायद भगवान उसके द्वार पर उस दिन इसलिए ही गए थे कि जो ज्योति धीमी-धीमी सरक रही है, धुएं में दबी पड़ी है, वह प्रज्वलित हो जाए। . और शायद ब्राह्मणी की चेष्टा—कि भगवान दिखायी न पड़ें—उसके अचेतन में उठे किसी भय के कारण ही संभव हई थी। ब्राह्मणी सोच रही थी, शायद भगवान भोजन मांग लेंगे और मुझे फिर भोजन बनाना पड़ेगा। यह उसकी व्याख्या थी। लेकिन शायद उसके भीतर भी जो भय पैदा हुआ था, वह भोजन का ही नहीं हो सकता। क्या भोजन बनाने में इतना भय हो सकता है? भय शायद यही रहा होगा कि कहीं आज ब्राह्मण को ही भगवान न ले जाएं। ___ क्योंकि जब भगवान बुद्ध जैसा व्यक्ति किसी के द्वार पर आता है, तो क्रांति होगी; तो आग लगेगी; तो पुराना जलेगा; तो नए का जन्म होगा।
लेकिन यह ब्राह्मणी को भी साफ नहीं है कि वह क्यों जाकर ब्राह्मण को छिपाकर, पीछे खड़ी हो गयी है। वह तो यही सोच रही है, गरीब ब्राह्मणी यही सोच रही है कि कौन दुबारा झंझट में पड़े! ___तुम अक्सर जो कारण सोचते हो अपने कृत्यों के, वे ही कारण कारण हों, ऐसा मत सोच लेना। तुम्हारे कारण तो कल्पित होते हैं। तुम्हें मूल का तो पता नहीं होता है।
ब्राह्मणी भी भयभीत हो गयी। और ध्यान रखना, स्त्रियों के भीतर अचेतन ज्यादा सक्रिय होता है पुरुषों की बजाय। इसलिए अक्सर स्त्रियों को उन बातों की झलक पुरुष से भी पहले मिल जाती है, जो बातें स्पष्ट नहीं हैं।
तुमने कई बार अनुभव किया होगा। रोज ऐसा घटता है कि स्त्री के भीतर विचार के पार पकड़ने की कुछ ज्यादा क्षमता है। पुरुष में बुद्धि बढ़ गयी है। स्त्री में