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________________ एस धम्मो सनंतनो के कारण। शायद उस दिन भगवान उसके द्वार पर आकर खड़े नहीं हुए होते, तो यह प्रश्न वर्षों तक रुकता; या न पूछता इस जीवन में। शायद कभी न पूछता। ठीक घड़ी में भगवान की मौजूदगी; उसके भीतर तरंग उठती ही उठती थी और भगवान की मौजूदगी, और भगवान की विराट तरंग उसकी छोटी सी तरंग को ले गयी उठाकर; उसके चैतन्य तक पहुंचा दिया। यह धक्का, यह सहारा—यही सदगुरु का अर्थ है। जो तुम्हारे भीतर धीमा-धीमा है, उसे त्वरा दे देनी। जो तुम्हारे भीतर कुनकुना-कुनकुना है, उसे इतनी गर्मी दे देनी कि भाप बनने की क्षमता आ जाए। जो तुम्हारे भीतर सोया-सोया है, उसे उठा देना, जगा देना। जो तुम्हारे भीतर सरक रहा है अंधेरे-अंधेरे में, उसे पकड़कर रोशनी में ला देना। ___यह मौजूदगी से ही हो जाता है; यह सिर्फ बुद्ध जैसे व्यक्ति की उपस्थिति से हो जाता है। तुम बुद्ध के पास जाकर ऐसे प्रश्न पूछने लगते हो, जो तुमने कभी पहले सोचे भी नहीं थे। तुम बुद्ध के पास जाकर ऐसी भावदशाओं से भर जाते हो, जो बिलकुल अपरिचित हैं। तुम बुद्ध के पास जाकर अपनी उन भाव-भंगिमाओं से परिचित होते हो, जिन्हें तुम जानते भी नहीं थे कि तुम्हारे भीतर हो भी सकती हैं। बुद्ध की उस अनायास उपस्थिति के मधुर क्षण में...। और अनायास था, इसलिए और भी मधुर था क्षण। अगर ब्राह्मण निमंत्रण देकर लाया होता, तो इतना मधुर नहीं होता। क्योंकि इतना आघातकारी नहीं होता। अगर निमंत्रण देकर लाया होता, तो इतनी चोट करने वाला नहीं होता; इतना अवाक नहीं करता। यह क्या! ऐसा ब्राह्मण नहीं पूछ पाता। जानता कि बुलाकर लाया हूं, इसलिए आए हैं। इसी जानकारी के कारण वंचित रह जाता; निर्दोष नहीं होता। चूंकि बुद्ध अनायास आ गए हैं, ब्राह्मण को बिलकुल निर्दोष दशा में पकड़ लिया है। अनायास पकड़ लिया है। और ध्यान रखना, परमात्मा सदा अनायास आता है। तुम जब बुलाते हो, तब नहीं आता। तुम्हारे बुलाने से कभी नहीं आता। तुम्हें जब पता ही नहीं होता; तुम जब शांत बैठे हो, खाली बैठे हो, कुछ नहीं बुला रहे हो; न संसार को बुला रहे, न परमात्मा को बला रहे: तुम्हारे भीतर कोई पकार ही नहीं है: तम्हारे भीतर कोई वासना-कामना नहीं है; तुम्हारे भीतर कोई स्वप्न तरंगें नहीं ले रहा है और अचानक! उसके पैरों की आवाज भी नहीं सुनायी पड़ती और वह तुम्हारे सामने आकर खड़ा हो जाता है! भगवान सदा ही अनायास आता है। अनायास आने में ही तुम्हारा रूपांतरण है। भगवान तुम्हें सदा जब आता है, तो चौंकाता है। विस्मयविमुग्ध कर देता है। तुम्हारी समझ में नहीं पड़ता कि यह क्या हो गया, कैसे हो गया! तुम अबूझ दशा को उपलब्ध हो जाते हो। क्योंकि भगवान रहस्य है। रहस्य बुलाए नहीं जा सकते; निमंत्रण नहीं 16
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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