SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 326
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो से भरना, एक भरना है। आकाश से भरना, दूसरा भरना है। ठीक ऐसा ही तुम्हारे भीतर भी घटता है। कूड़ा-करकट से भरे हो अपने को। छोड़ते भी नहीं, क्योंकि खाली न हो जाओ। छोड़ोगे, तभी तुम पहचानोगे कि तुम्हारे खाली करते-करते ही, जो उतर आता है आकाश तुम्हारे भीतर, वही तुम्हारी वास्तविकता है। उसे निर्वाण कहो, परमात्मा कहो-जो नाम देना हो, वह नाम दो। दूसरा प्रश्नः तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं . मुकद्दर आजमाना चाहता हूं मुझे बस प्यार का एक जाम दे दे मैं सब कुछ भूल जाना चाहता हूं। फिर तुम गलत जगह आ गए। | 'तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं।' यहां सारी चेष्टा यही चल रही है कि अब तुम अपना और न बनाओ। अपना बनाना यानी मोह, मेरे का विस्तार। मैं तुम्हें कोई तरह से भी सहयोगी नहीं हो सकता अपने को बढ़ाने में। ___ काफी दुख नहीं झेल लिया है अपनों से! अब तो छोड़ो। मुझसे तुम इस तरह का संबंध बनाओ, जिसमें मेरा-तेरा हो ही नहीं। नहीं तो वह संबंध भी सांसारिक हो जाएगा। जहां मेरा आया, वहां संसार आया। __क्या तुम बिना मेरे-तेरे को उठाए संबंध नहीं बना सकते? क्या यह संबंध मेरे-तेरे की भीड़ से.मुक्त नहीं हो सकता? तुम वहां, मैं यहां; क्या बीच में मेरे-तेरे का शोरगुल होना ही चाहिए? सन्नाटे में यह बात नहीं हो सकेगी? तुम शून्य बनो-बजाय मेरे का फैलाव करने के—तो तुम मुझसे जुड़ोगे। मैं शून्य हूं; तुम शून्य बनो; तो तुम मुझसे जुड़ोगे। मैंने मेरे का भाव छोड़ा है, तुम भी मेरे का भाव छोड़ो, तो मुझसे जुड़ोगे। मुझसे जुड़ने का एक ही उपाय है : मुझ जैसे हो जाओ, तो मुझसे जुड़ोगे। __ अब तुम कहते हो कि 'तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं।' तुमने कितने दरवाजों पर दस्तक दी! कितने लोगों को अपना बनाना चाहा! सब जगह से ठोकर खाकर लौटे; सब जगह से अपमानित हुए; अभी भी होश नहीं आया? फिर वही पुराना राग? लोग विषय बदल लेते हैं, गीत वही गाए चले जाते हैं। लोग वाद्य बदल लेते 311
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy