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एस धम्मो सनंतनो
हैं, सुर वही उठाए चले जाते हैं। कभी कहते हैं : मेरा धन। कभी कहते हैं: मेरा मकान। फिर कभी कहने लगते हैं : मेरा गुरु; मेरा भगवान; कि मेरा मोक्ष; कि मेरा शास्त्र! क्या फर्क पड़ता है, तुम मेरा शास्त्र कहो कि मेरी दुकान कहो, सब बराबर है। जहां मेरा है, वहां दुकान है। और इसीलिए तो मंदिरों पर भी झगड़े हो जाते हैं, क्योंकि जहां मेरा है, वहां झगड़ा है। जहां मेरा है, वहां उपद्रव है। ___ मैं एक गांव में गया। एक ही जैन मंदिर है। थोड़े से घर हैं उस गांव में। कुछ श्वेतांबरियों के घर हैं और कुछ दिगंबरियों के घर हैं। और एक ही मंदिर.है। मंदिर पर ताला पड़ा है पुलिस का! मैंने पूछाः मामला क्या है? उन्होंने कहाः श्वेतांबर और दिगंबर में झगड़ा हो गया। मंदिर एक ही है। कई दिनों से दोनों उसमें पूजा करते थे। सब ठीक चलता था। समय बांट रखा था। कि बारह बजे तक एक पूजा करेगा; बारह बजे के बाद दूसरे का हो जाएगा मंदिर।
कभी-कभी अड़चन आ जाती थी कि बारह बजे; समय हो गया। और कोई श्वेतांबरी है कि अभी पूजा किए ही चला जा रहा है! कोई उपद्रवी लोग होते हैं ! कोई पूजा से मतलब नहीं है। पूजा करनी हो, तो क्या मतलब है यहां आने का; कहीं भी हो सकती है। उपद्रवी लोग। देख लिया कि बारह बज गए हैं, लेकिन उपद्रव! खींचे गए पूजा को। साढ़े बारह बजा दिया। दिगंबरी आ गए लट्ठ लेकर–कि हटो।
वे उनके महावीर स्वामी खड़े देख रहे हैं बेचारे कि यह...! वहां लट्ठ चल गया। बारह के बाद मंदिर मेरा है। न ये जो लट्ठ लेकर आए हैं, इनको पूजा से प्रयोजन है। क्योंकि पूजा करने वाले को लट्ठ लेकर आने की क्या जरूरत थी? . श्वेतांबरी और दिगंबरी में कुछ बड़े भेद नहीं हैं। मगर मेरा! अड़चन आ जाती है। एक ही महावीर के शिष्य; एक की ही पूजा है। लेकिन उसमें भी थोड़े-थोड़े हिसाब लगा लिए हैं। जरा-जरा से हिसाब!
__ अब महावीर में ज्यादा हिसाब लगाने की सुविधा भी नहीं है। नग्न खड़े हैं। अब इसमें तुम फर्क भी क्या करोगे? लंगोटी भी नहीं लगा सकते! तो एक छोटा सा हिसाब बना लिया। दिगंबरी पूजा करते हैं महावीर की बंद-आंख-अवस्था में। और श्वेतांबरी पूजा करते हैं खुली-आंख-अवस्था में। ___ अब पत्थर की मूर्ति है, ऐसा आंख खोलना, बंद होना तो हो नहीं सकता। तो श्वेतांबरी एक नकली आंख चिपका देते हैं ऊपर से-खुली आंख! रहे आओ भीतर बंद किए! वह मूर्ति भीतर बंद आंख की है, ऊपर से खुली आंख चिपका दी! और पूजा कर ली। क्योंकि वे खुली आंख भगवान की पूजा करते हैं!
दिगंबरी आते हैं, वे जल्दी से निकाल आंख अलग कर देते हैं। महावीर से तो कुछ लेना-देना नहीं है।
तुमने कहानी सुनी! एक गुरु के दो शिष्य थे। एक भरी दुपहरी, गर्मी के दिन, और दोनों पैर दाब रहे थे। एक बायां, एक दायां। बांट लिया था उन्होंने आधा-आधा।
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