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________________ एस धम्मो सनंतनो यहां परमात्मा है। मैं एक बहुत बड़े अमीर के घर में मेहमान हुआ। अमीर थे; और जैसे अक्सर अमीर होते हैं, कोई सौंदर्य-बोध नहीं था। जो नया दुनिया में मिलता है—सारी दुनिया में यात्रा करते रहते थे-सब खरीद लाए थे। जहां जो मिले, वह ले आते थे। उनका घर एक कबाड़खाना था। जिस कमरे में मुझे ठहराया, उसमें सम्हलकर चलना पड़ता था, इतनी चीजें उसमें भर रखी थीं। सब कुछ था उसमें! मैंने उनसे कहा कि मुझे यहां सात दिन रुकना होगा; आप मुझ पर अगर थोड़ी कृपा करें, तो ये सब चीजें यहां से हटा दें। वे बोले : लेकिन कमरा खाली हो जाएगा! मैंने उनसे कहा : कमरा खाली नहीं हो जाएगा। कमरा कमरा हो जाएगा। अभी यह कमरा है ही नहीं। अभी यहां से चलना भी पड़ता है, तो सम्हलकर निकलना पड़ता है। यह कोई कमरा है! इसमें स्थान ही नहीं है। इसमें रहने की जगह नहीं है। इसमें . अवकाश नहीं है। कमरे का तो मतलब होता है जहां अवकाश हो, जहां रहने की जगह हो, जहां रहा जा सके। कमरे का मतलब होता है जहां रहा जा सके। यहां तो रह ही नहीं सकता कोई। यहां रिक्तता तो बिलकुल नहीं है। और रिक्तता के बिना कैसे रहोगे? रिक्तता में ही रहा जाता है। इसलिए तो सारा अस्तित्व आकाश में रहता है। क्योंकि आकाश यानी शून्य। आकाश यानी अवकाश। जगह देता है। पृथ्वी हो, चांद हो, तारा हो, सूरज हो, लोग हों, वृक्ष हों-सबको जगह देता है। आकाश शून्य नहीं है। आकाश पूर्ण है। लेकिन उसकी पूर्णता और ढंग की है। खैर मैं उनका मेहमान था। राजी तो वे बहुत नहीं थे, लेकिन अब मुझे वहां सात दिन रहना था। मैं भी राजी नहीं था, उस कबाड़खाने में रहने को। तो उन्हें मजबूरी में सब निकालना पड़ा। बड़े बेमन से उन्होंने निकाला। निकाल-निकालकर पूछते थे कि अब इतना रहने दें? मैं कहता ः इसको भी ले जाओ। रेडियो रहने दें? टेलीविजन रहने दें? मैंने कहाः सब तुम ले जाओ। तुम बस मुझे छोड़ दो। और तुम भी ज्यादा यहां मत आना-जाना। . ले गए बेमन से। उनको बड़ी उदासी लग रही थी। वे बड़े सोच भी रहे होंगे कि मैं भी कैसा नासमझ आदमी आ गया घर में! उन्होंने शायद मेरे आने की वजह से और चीजें वहां रख दी होंगी। उन्होंने तैयारी की थी। जब सब निकल गया, वहां कुछ भी न बचा, तो उन्होंने आकर बड़ी उदासी से चारों तरफ देखा और कहाः मैंने कहा था आपसे कि बिलकुल खाली हो जाएगा! उनकी आंखों में करीब-करीब आंसू थे कि सब खाली हो गया। मैंने उनसे कहा कि आप फिकर न करें। मुझे खाली में रहने का आनंद है। मुझे खाली में रहने का रस है। अब यह जगह बनी। अब यह कमरा भरा-पूरा है, कमरेपन से। स्थान से भरा है। आकाश से भरा है। मगर यह और ढंग का भराव है। फर्नीचर 310
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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