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एस धम्मो सनंतनो
देखते नहीं। अगर न हुआ तो? सुनते हैं, वहां परम आनंद की वर्षा हो रही है। सुनते हैं, मगर देखा नहीं कभी।
क्योंकि देखा, और अगर न हुआ, तो फिर तो जीवन बिलकुल ही निराश हो जाएगा। बाहर तो है ही नहीं; और अब भीतर भी नहीं है। फिर तो जीने का क्या कारण रह जाएगा? फिर तो आत्मघात के सिवाय कुछ भी न सझेगा।
इस घबड़ाहट से आदमी उलझा रहता है। पुराने मोह कट जाते हैं, नए मोह बना लेता है। पुरानी झंझटें छूट जाती हैं, नयी झंझटें बना लेता है। पुरानी खतम ही नहीं हो पातीं, उसके पहले ही नए के बीज बो देता है कि कहीं ऐसा न हो कि कुछ ऐसी घड़ी आ जाए कि खाली छूट जाऊं। पुरानी झंझट खतम; नयी है नहीं। अब क्या करूं? __ और आश्चर्य तुम्हें होगा यह जानकर कि जो इस भीतर की शून्यता को जानता है, वही सुख को जानता है। और तो सब दुख ही दुख है। जो इस शून्य होने को राजी है, वही पूर्ण हो पाता है। और तो सब खाली के खाली रह जाते हैं।
यह तुम्हें बड़ा उलटा लगेगा। जो खाली होने को राजी है, वह भर जाता है। और जो खाली होने को राजी नहीं है, वह सदा के लिए खाली रह जाता है।
जीसस ने कहा है : धन्य हैं वे, जो खोएंगे; क्योंकि जिन्होंने खोया, उन्होंने पाया। और जिन्होंने बचाया, उन्होंने सब गंवाया।
इसलिए तुम दुख नहीं छोड़ते। कुछ तो है मुट्ठी में। दुख ही सही। मुट्ठी तो बंधी है। भ्रांति तो बनी है।
बुद्ध का सारा संदेश यही है। सारे बुद्धों का संदेश यही है कि खोलो मुट्ठी। बंधी मुट्ठी खाली है। संसारी तो उलटी बात कहते हैं। वे कहते हैं : बंधी मुट्ठी लाख की, खुली कि खाक की! और बुद्ध कहते हैं : खोलो मुट्ठी। बंधी मुट्ठी खाक की, खोलो तो लाख की! खोलो मुट्ठी। सब खोल डालो। और एक बार आर-पार झांक लो। कुछ बंद मत रखो। कोई जेब डर के कारण छोड़ो मत। सब ही देख लो। चुकता देख लो। पूरा देख लो। उसी देखने में, उसी देखते-देखते तुम्हारा जीवन रूपांतरित हो जाता है।
जिसने अपने भीतर के शून्य का साक्षात्कार कर लिया, उसने पूर्ण का साक्षात्कार कर लिया। क्योंकि शून्य और पूर्ण एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जो एक तरफ से शून्य मालूम होता है, वही दूसरी तरफ से पूर्ण है।
शून्य मालूम होता है, क्योंकि तुम संसार को पकड़े हो। तुम एक तरह का ही भराव जानते हो–सांसारिक भराव। वह वहां नहीं है, इसलिए तुम्हें भ्रांति होती है कि भीतर शून्य है। जब तुमने सांसारिक भराव छोड़ दिया और तुमने भीतर झांका, तब तुम्हें दूसरी बात पता चलेगी कि यह शून्य नहीं है। यह मेरी सांसारिक पकड़ के कारण शून्य मालूम होता था। यहाँ संसार नहीं है, इसलिए शून्य मालूम होता था।
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