________________
एस धम्मो सनंतनो द्वारा, तुम भ्रष्ट हो जाते हो। तुम नष्ट हो जाते हो। __ लेकिन यह अनुभव तुम्हारा अपना होना चाहिए। मैं क्या कहता हूं, इसकी फिकर मत करो। तुम्हारा अनुभव क्या कहता है-कुरेदो अपने अनुभव को। जब भी तुमने कुछ पकड़ना चाहा, तभी तुम दुखी हुए हो।
क्यों दुख आता है पकड़ने से? क्योंकि इस संसार में सब क्षणभंगुर है। पकड़ा कुछ जा नहीं सकता। और तुम पकड़ना चाहते हो। तुम प्रकृति के विपरीत चलते हो; हारते हो। हारने में दुख है। जैसे कोई आदमी नदी के धार के विपरीत तैरने लगे। तो शायद हाथ दो हाथ तैर भी जाए। लेकिन कितना तैर सकेगा? थकेगा। टूटेगा। विपरीत धार में कितनी देर तैरेगा? धार इस तरफ जा रही है; वह उलटा जा रहा है। थोड़ी ही देर में धार की विराट शक्ति उसकी शक्ति को छिन्न-भिन्न कर देगी। थकेगा। हारेगा। और जब थकेगा, हारेगा और पैर उखड़ने लगेंगे और नीचे की तरफ बहने लगेगा, तब विषाद घेरेगा कि हार गया; पराजित हो गया। जो चाहिए था, नहीं पा सका। जो मिलना था, नहीं मिल सका। तब चित्त में बड़ी ग्लानि होगी। आत्मघात के भाव उठेगे। दुख गहन होगा।
जो जानता है, वह नदी की धार के साथ बहता है। वह कभी हारता ही नहीं, दुख हो क्यों! वह नदी की धार को शत्रु नहीं मानता; मैत्री साधता है।
बुद्धत्व आता कैसे है? बुद्धत्व आता है स्वभाव के साथ मैत्री साधने से। जैसा है, जैसा होता है, उससे विपरीत की आकांक्षा मत करना, अन्यथा दुख होगा।
जानकर हम विपरीत की आकांक्षा करते हैं ! तुम सोचते हो, जो मुझे मिला...।
समझो कि तुम जवान हो, तो तुम सोचते हो, सदा जवान रह जाऊं। तुम क्या कह रहे हो? थोड़ा आंख उठाकर देखो। ऐसा हो सकता होता, तो सभी जवान रह गए होते। ऐसा हो सकता होता, तो कौन बूढ़ा हुआ होता-जानकर, सोचकर, विचारकर, राजी होकर?
हर जवान रुक जाना चाहता है कि बूढ़ा न हो जाऊं। लेकिन हर एक को बूढ़ा होना पड़ेगा। धार बही जाती है। यह पानी के बबूलों जैसा जीवन रोज बदलता जाता है। यहां कुछ भी थिर नहीं है। तो जब बुढ़ापा आएगा, और उसके पहले कदम तुम सुनोगे, दुख होगा-कि हार गया। हारे इत्यादि कुछ भी नहीं। जीत की आकांक्षा के कारण हार का खयाल पैदा हो रहा है। यह भ्रांति इसलिए बन रही है, क्योंकि तुम जवान रहना चाहते थे और प्रकृति किसी चीज को ठहरने नहीं देती। प्रकृति बहाव है। और तुमने प्रकृति के विपरीत कुछ चाहा था, जो संभव नहीं है, संभव नहीं हो सकता है। न हुआ है, न कभी होगा। __ जो संभव नहीं हो सकता, उसकी आकांक्षा में दुख है। फिर तुम बूढ़े हो जाओगे, तब भी नहीं समझोगे। अब तुम मरना नहीं चाहते! पहले जवानी पकड़ी थी; अब बुढ़ापे को पकड़ते हो। तो कुछ सीखे नहीं!
305