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________________ एस धम्मो सनंतनो रही हो, तो फिर भीतर के स्वर सुगबुगाने लगते हैं। वे कहते हैं: एक कोशिश और कर लो। जहां सब जा रहे हैं, वहां कुछ होगा। नहीं तो इतने लोग अनंत-अनंत काल से उस तरफ जाते क्यों? अब तक रुक न जाते? तो बुद्धपुरुष फिर...तुम्हारे भीतर उनका स्वर धीमा पड़ जाता है। भीड़ की आवाज फिर वजनी हो जाती है। और भीड़ की आवाज इसलिए वजनी हो जाती है कि अंतस्तल में तुम भीड़ से ही राजी हो, क्योंकि तुम भीड़ के हिस्से हो; तुम भीड़ हो। बुद्धपुरुषों से तो तुम किसी-किसी क्षण में राजी होते हो। कभी। बड़ी मुश्किल से। एक क्षणभर को तालमेल बैठ जाता है। उनकी वीणा का छोटा सा स्वर तुम्हारे कानों में गूंज जाता है। मगर यह जो नक्कारखाना है, जिसमें भयंकर शोरगुल मच रहा है, यह तुम्हें चौबीस घंटे सुनायी पड़ता है। ___ तुम्हारे पिता मोह से भरे हैं; तुम्हारी मां मोह से भरी है; तुम्हारे भाई, तुम्हारी बहन, तुम्हारे शिक्षक, तुम्हारे धर्मगुरु-सब मोह से भरे हैं। सबको पकड़ है कि कुछ मिल जाए। और जो मिल जाता है, उसे पकड़कर रख लें। और जो नहीं मिला है, उसे भी खोज लें। मोह का अर्थ क्या होता है? मोह का अर्थ होता है—मेरा, ममत्व; जो मुझे मिल गया है, वह छूट न जाए। लोभ का क्या अर्थ होता है? लोभ का अर्थ होता है : जो मुझे अभी नहीं मिला है, वह मिले। और मोह का अर्थ होता है : जो मुझे मिल गया है, वह मेरे पास टिके। ये दोनों एक ही पक्षी के दो पंख हैं। उस पक्षी का नाम है : तृष्णा, वासना, कामना। इन दो पंखों पर तृष्णा उड़ती है। जो है, उसे पकड़ रखू; वह छूट न जाए। और जो नहीं है, वह भी मेरी पकड़ में आ जाए। एक हाथ में, जो है, उसे सम्हाले रखू; और एक हाथ उस पर फैलाता रहूं, जो मेरे पास नहीं है। मोह लोभ की छाया है। क्योंकि अगर उसे पाना है, जो तुम्हें नहीं मिला है, तो उसको तो पकड़कर रखना ही होगा, जो तुम्हें मिल गया है। समझो कि तुम्हारे पास पांच लाख रुपये हैं और तुम पचास लाख चाहते हो। अब पचास लाख अगर चाहिए, तो ये पांच लाख खोने नहीं चाहिए। क्योंकि इन्हीं के सहारे पचास लाख मिल सकते हैं। ___ अगर ये खो गए, तो फिर पचास लाख का फैलाव नहीं हो सकेगा। धन धन को खींचता है। पद पद को खींचता है। जो तुम्हारे पास है, उसमें बढ़ती हो सकती है। लेकिन अगर इसमें कमती होती चली जाए, तो फिर जो तुम्हें नहीं मिला है, उसको पाने की आशा टूटने लगती है। तो जो है, उस पर जमाकर पैर खड़े रहो। और जो नहीं है, उसकी तरफ हाथों को बढ़ाते रहो। इन्हीं दो के बीच आदमी खिंचा-खिंचा मर जाता है। ये दो पंख वासना के हैं; और ये ही दो पंख तुम्हें नर्क में उतार देते हैं। वासना तो उड़ती है इनके 304
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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