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________________ एस धम्मो सनंतनो तुम इनकार नहीं कर सकते, क्योंकि इनका जीवन तुमसे बहुत ज्यादा, अनंतगुना आनंदपूर्ण है। इनका तर्क प्रगाढ़ है। इनकी प्रतिभा वजनी है। ये जब कुछ कहते हैं, तो उस कहने के पीछे इनका पूरा बल होता है; इनकी पूरी जीवन-ज्योति होती है। ___ तो इनकी बात को तुम इनकार नहीं कर सकते। इनकार करने की तुम्हारे पास क्षमता नहीं है, साहस नहीं है। इनकार कैसे करोगे! तुम्हारे चेहरे पर दुख है; तुम्हारे प्राणों में दुख है। इनके चारों तरफ आनंद की वर्षा हो रही है। इनकार तुम किस मुंह से करोगे! तो इनकार तो नहीं कर पाते कि आप गलत कहते हैं। मानना तो पड़ता है सिर झुकाकर, कि आप ठीक कहते होंगे। क्योंकि हम दुखी हैं और आप आनंदित हैं। लेकिन भीतर तुम्हारा गहरे से गहरा मन यही कहे चला जाता है कि छोड़ो, इन बातों में पड़ना मत। संसार में बड़ा सुख पड़ा है। शायद अभी नहीं मिला है, तो कल मिलेगा। आज तक नहीं मिला है, तो कल भी नहीं मिलेगा-यह कौन कह सकता है? खोदो थोड़ा और। शायद जलस्रोत मिल जाए। थोड़ी मेहनत और। जल्दी थको मत। दिल्ली ज्यादा दूर नहीं है। थोड़े और चलो। इतने चले हो, थोड़ा और चल लो। इतनी जिंदगी गंवायी है, थोड़ी और दांव पर लगाकर देख लो। और फिर नहीं होगा कुछ, तो अंत में तो धर्म है ही। लेकिन तुम धर्म को हमेशा अंत में रखते हो। तुम कहते हो नहीं होगा कुछ, तो अंततः तो परमात्मा का स्मरण करेंगे ही। मगर जब तक जीवन है, चेष्टा तो कर लें। इतने लोग दौड़ते हैं, तो गलत तो न दौड़ते होंगे! अब एक दूसरी बात खयाल में लेना। जब तुम बुद्धपुरुषों के पास होते हो, तो उनकी आंखें, उनका व्यक्तित्व, उनकी भाव-भंगिमा, उनके जीवन का प्रसाद, उनका संगीत-सब प्रमाण देता है कि वे ठीक हैं, तुम गलत हो। लेकिन बुद्धपुरुष कितने हैं? कभी-कभी उनसे मिलना होता है। और मिलकर भी कितने लोग उन्हें देख पाते हैं और पहचान पाते हैं? सुनकर भी कितने लोग उन्हें सुन पाते हैं? आंखें कहां हैं जो उन्हें देखें? और कान कहां हैं जो उन्हें सुनें? और हृदय कहां हैं, जो उन्हें अनुभव करें? और कभी-कभी विरल उनसे मिलना होता है। __जिनसे तुम्हारा रोज मिलना होता है सुबह से सांझ तक-करोड़ों-करोड़ों लोग-वे सब तुम जैसे ही दुखी हैं। और वे सब संसार में भागे जा रहे हैं; तृष्णा में दौड़े जा रहे हैं; मोह में, लोभ में। इनकी भीड़ भी प्रमाण बनती है कि जब इतने लोग जा रहे हैं इस संसार की तरफ, जब सब दिल्ली जा रहे हैं, तो गलती कैसे हो सकती है? इतने लोग गलत हो सकते हैं? इतने लोग नहीं गलत हो सकते। अधिकतम लोग गलत होंगे? और इक्का-दुक्का आदमी कभी सही हो जाता है! यह बात जंचती नहीं। इनमें बहुत समझदार हैं। पढ़े-लिखे हैं। बुद्धिमान हैं। प्रतिष्ठित हैं। इनमें सब तरह के लोग हैं। गरीब हैं, अमीर हैं। सब भागे जा रहे हैं! इतनी बड़ी भीड़ जब जा 303
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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