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एस धम्मो सनंतनो
है? लेकिन सहानुभूति बताने का मजा है। और सहानुभूति लेने का भी मजा है। सहानुभूति बताने वाले को क्या मजा मिलता है? उसको मजा मिलता है कि आज मैं उस हालत में हूं, जहां सहानुभूति बताता हूं। तुम उस हालत में हो, जहां सहानुभूति बतायी जाती है। आज तुम गिरे हो चारों खाने चित्त; जमीन पर पड़े हो। आज मुझे मौका है कि तुम्हारे घाव सहलाऊं, मलहम-पट्टी करूं। आज मुझे मौका है कि तुम्हें बताऊं कि मेरी हालत तुमसे बेहतर है।
जब कोई तुम्हारे आंसू पोंछता है, तो जरा उसकी आंखों में गौर से देखना। वह खुश हो रहा है। वह यह खुश हो रहा है कि चलो, एक तो मौका मिला। नहीं तो अपनी ही आंखों के आंसू दूसरे पोंछते रहे जिंदगीभर। आज हम किसी और के आंसू पोंछ रहे हैं! और कम से कम इतना अच्छा है कि हमारी आंख में आंसू नहीं हैं। किसी और की आंखों में आंसू हैं। हम पोंछ रहे हैं!
लोग जब दुख में सहानुभूति दिखाते हैं, तो मजा ले रहे हैं। वह मजा रुग्ण है। वह स्वस्थ-चित्त का लक्षण नहीं है। और तुम भी दुखी होकर जो सहानुभूति पाने का उपाय कर रहे हो, वह भी रुग्ण दशा है।
यह पृथ्वी रोगियों से भरी है; मानसिक रोगियों से भरी है। यहां स्वस्थ आदमी खोजना मुश्किल है। __ पूछा है तुमने ः 'मोह क्या है? और इतना दुख पैदा होता है, फिर भी वह छूटता नहीं है! __पहली तो बातः तुम्हें अभी ठीक-ठीक दिखायी नहीं पड़ा होगा कि मोह से दुख पैदा होता है। तुमने सुन ली होगी बुद्ध की बात, कि किसी महावीर की, कि किसी कबीर की, कि किसी मोहम्मद की। तुमने बात सुन ली होगी कि मोह से दुख पैदा होता है। अभी तुम्हें समझ नहीं पड़ी है। सुनी जरूर है; अभी गुनी नहीं है। विचार तुम्हारे मन में पड़ गया है। विचार के कारण प्रश्न उठने लगा है। लेकिन यह तुम्हारा अपना प्रामाणिक अनुभव नहीं है। यह तुमने अपने जीवन की कठिनाइयों से नहीं जाना है। तुमने इसे अपने अनुभव की कसौटी पर नहीं कसा है—कि मोह दुख लाता है। अगर तुम्हें यह दिखायी पड़ जाए, तो तुम कैसे पकड़ोगे!
कोई आदमी मेरे पास नहीं आता और कहता कि यह बिच्छ है, यह मेरे हाथ में काटता है। अब मैं इसको छोडूं कैसे? कोई पूछेगा? कि बिच्छू है; काटता है; दुख देता है; मगर छोड़ा नहीं जाता! जैसे ही बिच्छू काटेगा, तुम फेंक दोगे उसे। तुम पूछने नहीं जाओगे किसी से।
लेकिन तुम पूछ रहे हो कि 'मोह दुख देता है, फिर भी छूटता क्यों नहीं?' ___ इसका कारण साफ है। भीतर तो तुम जानते हो कि मोह में मजा है। ये बुद्धपुरुष हैं जो तुम्हारे चारों तरफ शोरगुल मचाए रहते हैं; जो कहते हैं कि मोह में दुख है। इनकी बात तुम टाल नहीं सकते। क्योंकि ये आदमी प्रामाणिक हैं। इनकी बात को
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