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________________ एस धम्मो सनंतनो तो आदमी कुछ भी कर सकता है। तुम्हारे ऋषि-मुनि जो उपवास करके अपने को दुख दे रहे हैं, इसी तर्क का उपयोग कर रहे हैं जो स्त्रियां हर घर में कर रही हैं; बच्चे हर घर में कर रहे हैं। किसी ने तीस दिन का उपवास कर लिया है; और तुम चले दर्शन करने! उसने दुख पैदा कर लिया है; उसने तुम्हारे ध्यान को आकर्षित कर लिया है। अब तो जाना ही होगा! ऐसे और हजार काम थे। दुकान थी, बाजार था, लेकिन अब मुनि महाराज ने तीस दिन का उपवास कर लिया है, तो अब तो जाना ही होगा! भीड़ बढ़ने लगती है। लोग कांटों पर लेटे हैं। सिर्फ इसीलिए कि कांटों पर लेटें, तभी तुम्हारी नजरें उन पर पड़ती हैं। लोग अपने को सता रहे हैं। धर्म के नाम पर लोग हजार तरह की पीड़ाएं अपने को दे रहे हैं; घाव बना रहे हैं। जब तक तुम्हारे मुनि महाराज बिलकुल सूखकर हड्डी-हड्डी न हो जाएं, जब तक तुम्हें थोड़ा उन पर मांस दिखायी पड़े, तब तक तुम्हें शक रहता है कि अभी मजा कर रहे हैं! अभी हड्डी पर मांस है। जब मांस बिलकुल चला जाए, जब वे बिलकुल अस्थि-पंजर हो जाएं, तुम कहते हो : हां, यह है तपस्वी का रूप! जब उनका चेहरा पीला पड़ जाए और खून बिलकुल खो जाए...। ___एक बार कुछ लोग अपने एक मुनि को मेरे पास ले आए थे। उनकी हालत खराब थी। लेकिन भक्त मुझसे कहकर गए थे कि उनके चेहरे पर ऐसी आभा है, जैसे सोने की! वहां पीतल भी नहीं था। वह सिर्फ पीलापन था। मैंने उनसे कहा कि तुम पागल हो। तुम इस आदमी को मार डालोगे। इसका चेहरा सिर्फ पीला हो गया है; जर्द हो गया है। और तुम कह रहे हो, यह आभा है अध्यात्म की! यह कोई भी भूखे मरने वाले आदमी के चेहरे पर हो जाएगी। दुख जल्दी से लोगों का ध्यान आकर्षित करवाता है। __ तुमने एक बात खयाल की! अगर तुम सुखी हो, तो लोग तुमसे नाराज हो जाते हैं! तुम जब दुखी होते हो, तब तुमसे राजी होते हैं। तुम जब सुखी हो, सब तुम्हारे दुश्मन हो जाते हैं। सुखी आदमी के सब दुश्मन। दुखी आदमी के सब संगी-साथी। सहानुभूति प्रगट करने लगते हैं। तुम एक बड़ा मकान बना लो; सारा गांव तुम्हारा दुश्मन। तुम्हारे मकान में आग लग जाए, सारा गांव तुम्हारे लिए आंसू बहाता है। तुमने यह मजा देखा ! जो तुम्हारे दुख में आंसू बहा रहे हैं, इन्होंने कभी तुम्हारे सुख में खुशी नहीं मनायी थी। इनके आंसू झूठे हैं। ये मजा ले रहे हैं। ये कह रहे हैं : चलो, अच्छा हुआ। तो जल गया न! हम तो पहले से ही जानते थे कि यह होगा। पाप का यह फल होता ही है। जब तुमने बड़ा मकान बनाया था, इनमें से कोई नहीं आया था कहने कि हम खुश हैं; कि हम बड़े आनंदित हैं कि तुमने बड़ा मकान बना लिया। जो तुम्हारे सुख में सुखी नहीं हुआ, वह तुम्हारे दुख में दुखी कैसे हो सकता 301
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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